मुखपृष्ठ

सोमवार, 1 अप्रैल 2013

इस थोथे समाज ने स्त्रियों को अधिकार के नाम पर क्या दिया है

सिर्फ समर्पित होने का अधिकार हर चीज हर बात में हर रिश्तें में ...

एक स्त्री को इस समाज में एक बेहद मामूली सा, कोई गलती करने का या किसी स्तर पर चूक जाने का अधिकार तक नहीं दिया गया है ...

लानत है ऐसे दुष्चक्र पर जो एक स्त्री या लड़की के कहीं भी कभी भी चूकते या गलती करते उसे निगल जाने को दौड़ पड़ता है ...

हज़ार तमगे, उसके चरित्र की परम्परागत चलनहारी परिभाषाओं के अधीन उसकी पूरी उपस्थिति को नकारते हुए पहना दिये जाते है ...

क्यों स्त्रियों और लड़कियों की गलतियाँ, अपराधों की तरह उनके सर माथे रख दी जाती है ...

क्यों उनकी चूकों को उनकी शर्मिदगी बना कर ,उन्हें चुप हो कर कोने-कतरों में छुप कर बैठने की राह दिखाई जाती है ...

माफ कीजिये, बाकी अधिकार देना और सहधर्मी होना तो बहुत बाद की बात है पहले उन्हें गलती करने और चूकने का प्राथमिक अधिकार दीजिये ...