मुखपृष्ठ

रविवार, 8 अप्रैल 2012

!!!! भारत का स्वर्णिम अतीत !!!!!

!!!! भारत का स्वर्णिम अतीत !!!!!

एक फ्रांस के इतिहासकार फ्रंस्वापिराध (1711) में भारत आकर अपनी किताब में लिखा की भारत में 36 तरह के उद्योग चल रहे थे और भारत पिछले 3000 वर्सो से एक्सपोर्टिंग कण्ट्री रहा है। इसी तरह कुछ और दुनिया के इतिहासकार भारत को एक अदभुत व सोने -चांदी का महासागर वाला देश मानते रहे इन इतिहासकारों की संख्या लगभग 200 है जिनके नाम इस प्रकार है::
1.FRANCVAPIRAAD(FRANCE)
2.MARTIN(SCOTISH)
3.TRAVENI(FRANCE)
4.WILLIAM BAARD(ENGLAND)
5.THOMAS MUNRO(GOVERNER OF MADDRAS, EAST INDIA COMPONY)
6.KAMPWELL
7.DR. SCOTT
8.JAMES FRANKLIN
9.A. BAAKER
10.G.W. LITINUS
11.WILLIAM DIGBY (1700)

(प्रमाणित दस्तावेजों पर लिखने वाला इतिहासकार यूरोप का) ने लिखा है की उद्योग ,कृषि ,दुनिया में भारत की सर्वस्रेस्थ व भारत दुनिया का ऐसा देश जिसे सोने -चांदी -हीरे का महासागर कहा जा सकता है .
इन सभी इतिहासकारों ने भारत को TECHNOLOGY में INDUSTRY में कृषि में दुनिया का नंबर 1 देश माना है .
2 FEB.1835 को T.B. MCLAY ने HOUSE OF COMMON'S(इंग्लैंड की संसद )में 3.5GHANTE की अपनी स्पीच में भारत की एक तस्वीर रखी है जैसे -
एक्सपोर्ट ऑफ़ इंडिया इन 1835=33%
GDP में भारत दुनिया की GDP में =43%
TOTAL INCOME दुनिया की कुल इनकुम में =27%

ये सभी प्रमाणित दस्तावेजों के आधार पर है जो की दिखाता है भारत TECHNOLOGY,व्यापार, कृषि, उत्पादन में कितना ताकतवर देश था ....!!!!! पर हमारे देश के अधिकांश पड़े लिखे लोग भारत के इतिहास के बारे में ग़लतफ़हमी में रहते है क्यों की जो इतिहास अँगरेज़ हमें तोड़ मरोड़ के पड़ा गए, उसे हमारे लोग ब्रह्म वाकया समझ लिया, जब की अंग्रेजी इतिहास कारो ने इंग्लैंड और यूरोप जाकर बिलकुल विपरीत बोला !!

जय हिन्द, जय भारत !!

गुरुवार, 5 अप्रैल 2012

उम्र जो छूट गई तुम्हारे मुड़ने से...

तुम जब मुड़े थे,
मुड़ गया था समय...
अपनी धुरी से...
मेरे इंद्रधनुष छूट गए तुम्हारे पास...
और एक चमकीली हंसी भी...
मेरे चेहरे पर सूरज ने मल दी उदासी,
जो धूप के हर टुकड़े में पूरी नज़र आती है...
तुम ये कभी देख नहीं पाए शायद...
कि जो छूट गया वो तुम थे,
जो मेरे पास रहा, वो भी तुम ही थे...

पत्थर समय से टकराकर,
मज़बूत हो गए हैं हम,
और ज़रा-सा चालाक भी...
कंधे जो हल्के थे कभी,
अपने ही बोझ तले झुक गए हैं...
जो भी देखता है कहता है,
बड़े हो गए हैं हम...

जब हम बड़े होते हैं,
हमारे साथ बड़ी होती है उम्र...
और धुंधली होती है याद..
बीत चुके उम्र की...
हमारे साथ बड़ा होता है खालीपन....
छूट चुके रिश्तों का...
और बड़ा होता है खारापन,
आंसूओं का...
चुप्पियां बड़ी होती हैं,
और उनमें छिपा दर्द भी..
ये तमाम शहर बड़े होते हैं हमारे साथ...
हमारे-तुम्हारे शहर...
शहरों की दूरियां घटती हैं,
रिश्तों की नहीं घटती...

और उम्मीद भी तो बड़ी होती है....
कि किसी दिन तेज़ आंधी में,
जब लचक रहा होगा मन,
हम पकड़ सकेंगे उम्र का दूसरा सिरा...
उम्र न सही एक ख़ास दिन ही सही,
बड़ा दिन..

मुझे उधार दो कुछ रद्दी ख्वाहिशें,
और एक पुरानी छुअन भी,
हमारी उदासियों का कोरस जो तुम्हारे पास है...
कि इस दिन को सजाया जाए..

उम्र जो छूट गई तुम्हारे मुड़ने से...
उसका कोई नाम नहीं....
दिन जो बड़ी जतन से सजा है आज..
उसका कोई नाम तो हो...
कोई तो नाम रखो इस दिन का...

ज़िंदगी तुमको सौंपनी थी मगर,
लो ये बड़ा दिन तुम्हारे नाम किया...

जनता को ही मूर्ख बनाना

पत्थर बिन दीवार बनाना, इन्सानों ने सीख लिया
पत्थर दिल इन्सान बनाना, भगवानों ने सीख लिया.

दूर हुए सब रिश्ते-नाते,दूर हुआ मिलना-जुलना
अपनों का किरदार निभाना बेगानों ने सीख लिया

प्रेम के इजहारों के दिन भी, त्यौहारों में बदले हैं
इनसे भी अब लाभ कमाना, बाज़ारों ने सीख लिया

कौन है हमको लूटने वाला काश कभी हम जान सकें
खादी में भी खुद को छुपाना मक्कारों ने सीख लिया

घड़ियाली आंसू बहते हैं, संसद के गलियारों में
ज्यूँ मछली से प्यार जताना, मछुआरों ने सीख लिया

एक नहीं लाखों मरते हैं, धरती के इक कंपन से
ढेरों कुनबे साथ जलाना, शमशानों ने सीख लिया

डोल गई दिल्ली की सत्ता, ऐसा मतिभ्रम खूब हुआ
जनता को ही मूर्ख बनाना, सरकारों ने सीख लिया.

बुधवार, 4 अप्रैल 2012

हम शायद सफलता का मूलमंत्र भूल चुके है.

कहते है कि मानव जीवन अमूल्य है, इसे प्राप्त करना सहज नहीं है लेकिन क्या हमने सोचा कि आज की इस आपाधापी में हमने इंसान बन कर क्या पाया है. आइये जरा इसका हिसाब करके देखते है :

आज हमारे पास बड़ी बड़ी इमारते तो है लेकिन सहनशक्ति थोड़ी सी है.
चौड़े रास्ते तो है लेकिन मानसिकता संकीर्ण है
हम खर्चते बहुत है लेकिन पाते कम है,
खरीदते ज्यादा है लेकिन उपयोग कम करते है.

हमारे पास बड़े मकान लेकिन छोटे परिवार है,
ज्यादा सुविधाए लेकिन कम समय है,
ज्यादा डिग्रियां है लेकिन कम समझ है,
ज्ञान अधिक है लेकिन परखने की शक्ति कम है,
दवाइयाँ बहुत है लेकिन तंदुरुस्ती कम है,

हमने अपने हक तो बड़ा दिए है लेकिन मूल्य खो दिए है.
हम बोलते बहुत है, नफरत ज्यादा करते है और सोचते कम है.
हमने जीने के तरीके खोज लिए लेकिन हम मानवता को भूल गए.
हमने जिंदगी में कई साल जोड़ दिए लेकिन हम किसी भी साल को जिंदगी से नहीं जोड़ पाए.
हमने धरती के बहार अंतरिक्ष पर तो विजय प्राप्त कर ली लेकिन खुद अपने अंतर्मन को नहीं जीत पाए
हमने हवा को साफ़ कर दिया लेकिन आत्मा को प्रदूषित कर दिया
हमने परमाणु को भी तोड़ दिया लेकिन अपनी सोच को नहीं छोड़ पाए
आज तनख्वाह ज्यादा हो गई है लेकिन सदाचार कम हो गया है
हम ज्यादा मात्रा में और कम गुणवत्ता में विश्वास करने वाले हो गए है.
लोग बलिष्ठ शरीर और कमजोर चरित्र वाले हो गए है
जिन्हें फायदे में ज्यादा और संबंधो में कम विश्वास है.

ये वो समय है जहाँ विश्व शांति की बात होती है
लेकिन गृह्कलेश ही खत्म नहीं होते, अवकाश ज्यादा और प्रसनत्ता कम रहती है,
ये दोहरी तनख्वाह और ज्यादा तलाक होते है, विशिष्ट महलनुमा मकान है, लेकिन टूटे हुए घर है.

आज के मानव के पास दिखाने को गर्व बहुत है
लेकिन वो अंदर से काफी हद तक खाली है.
ये दुर्गति शायद इसलिए है क्योंकि हम शायद सफलता का मूलमंत्र भूल चुके है.

लेकिन दिल खाली है

तब दोस्तों से घंटो बाते होती थी,
अब मोबाइल SMS से हाय हैलो होती है
तब क्रिकेट का बैट हाथ में होता था और सड़क पर क्रिकेट खेलने लग जाया करते थे,
अब लेपटोप और मोबाइल साथ में होता है और सड़क पर ही टिपियाने लग जाते है
तब शांत खड़े होकर चिड़िया और कोयल की आवाज़ सुना करते थे,
अब कंप्यूटर पर mpeg फाइल सुनते है
तब रात में छत पर लेट कर चमकते तारे देखा करते है,
अब काम के टेंशन में रात में तारे नज़र आते है
तब शाम को दोस्तों के साथ बैठ कर गपशप करते है,
अब चैट रूम में बनावटी लोगो से बाते करते है
तब ज्ञान प्राप्ति के लिए पढाई करते थे,
अब नौकरी बचाने के लिए पढ़ना पड़ता है
तब जेब खाली पर दिल उमंगो से भरा होता था,
अब जेब ATM, Credit/Debit card से भरी है लेकिन दिल खाली है
तब सड़क पर खड़े हो कर भी चिल्ला लेते थे,
अब घर में ही जोर से नहीं बोल पाते
तब लोग हमें ज्ञान का पाठ पढाते थे,
अब हम सबको ज्ञान देते फिरते है
--------------- संभार  Bhavesh (भावेश )

सोमवार, 2 अप्रैल 2012

वजूद खो देंगे...

जिस दिन दुनिया सी चालाकी सीख जाएँगे
उस दिन हम अपना वजूद खो देंगे...

शीशा हूँ हश्र क्या होगा

मेरे वजूद का रिश्ता ही आसमान से है
न जाने क्यूँ उन्हें शिकवा मेरी उड़ान से है

मुझे ये ग़म नहीं शीशा हूँ हश्र क्या होगा
मेरी तो जंग ही किसी चट्टान से है