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बुधवार, 28 दिसंबर 2011

हिंदी प्रेमियों के लिए खुसखबरी !


हिंदी प्रेमियों के लिए खुसखबरी !!!!!!

फेसबुक में अपनी प्रोफाइल में हिंदी में नाम कैसे लिखें !

आप सबसे पहले "Account setting खाता सेट्टिंग " में जाए ! फिर आप "name edit नेम एडिट" को क्लिक करें ! वहाँ पर प्रथम,मिडिल व लास्ट नाम हिंदी में भरें और डिस्प्ले नाम के स्थान पर अपना पूरा नाम हिंदी में भरें ! उसके बाद नीचे दिए विकल्प वाले स्थान में आप अपना नाम अंग्रेजी में भरने के बाद SAVE CHANGE ओके कर दें ! अब आपको कोई भी सर्च के माध्यम से तलाश भी कर सकता है और आपका नाम हर संदेश और टिप्पणी पर हिंदी में भी दिखाई देगा !

चीन, रूस, फ्रांस, इसराइल, जर्मनी, कोरीया जापान और इन जैसे कई अन्य देशों को देखें जिन्होने अपनी मातृभाषा के दम पर विकास किया है| इन देशों के लोग अँग्रेज़ी बोलने मे शर्म करते हैं और अपनी मातृभाषा को ज़्यादा महत्व देते हैं| प्रथम कक्षा से लेकर स्नातक स्तर तक इन देशों मे शिक्षा का माध्यम इनकी मातृभाषा ही है, अँग्रेज़ी नही| फिर भी ये हमसे कहीं आयेज हैं| आजकल हमारे विद्यालयों मे भारतीय नही अँग्रेज़ निकल रहे हैं जिन्हे अपनी संस्कृति सभ्यता की कोई जानकारी नही है| वो पाश्चात्य अश्लील सभ्यता का अंधानुकरण कर रहे हैं बस|

गुरुदेव रवींद्रनाथ टागॉर को नोबेल पुरुस्कर मिलने के बाद जब उनसे कहा गया कि आपके अंगेजी के कारण ही आपको नोबेल प्राइज़ मिला सका है, रवींद्रनाथ टागॉर दुनिया के सामने आ सका है, तब गुरुदेव ने कहा कि अंगेजी के कारण एक रवींद्रनाथ दुनिया के सामने आया लेकिन हज़ारो रवींद्रनाथ नष्ट हो गये |

हिंदी भारत में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। तभी तो देश के बाहर भी हिंदी ने अपना स्थान बना सकने में सफलता हासिल किया है। फ़िजी,नेपाल,मोरिशोस,गयाना,सूरीनाम यहाँ तक चाइना और रसिया में भी हिंदी अच्छी तरह बोली और पढ़ी जाती है।

जय हिन्द, जय भारत ! वन्दे मातरम !!

शनिवार, 24 दिसंबर 2011

शनिवार, 17 दिसंबर 2011

इश्वर आपकी ज़िन्दगी में







कितनी खूबसूरती से 
इश्वर आपकी ज़िन्दगी में 
हर एक दिन जोड़ता है .... 
इसलिए नही की 
आप को उसकी जरुरत है ... 
पर शायद इसलिए .. 
की किसी और को आप की ज्यादा जरुरत हैं ........
                                           -  अनूप पालीवाल

तुम्हारी यादो की गर्माहट

तुम्हारी यादो की गर्माहट मुझसे लिपटी रहती है
वर्ना इस सर्द दिसम्बर की हवाए मुझे निपटा देती
                                          -  अनूप पालीवाल

तुम्हारे दिमाग

मुझे अपने दिल में
कंही जगह दे दो
तुम्हारे दिमाग से
निकला जा रहा हु में
                            -  अनूप पालीवाल



शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011

1हाथ में पकड़ा फूल
चुपचाप कह सकता है
कि मैं अमन के लिए हूँ
पर हाथ में पकड़ी तलवार
बोलकर भी नहीं कह सकती
कि मैं अमन के लिए हूँ...

2
आसमान पर भले ही
आसमान जितना लिखा हो
कि ज़िन्दगी दु:ख है
तो भी
धरती पर आदमी
अपने बराबर तो लिख ही सकता है
कि ज़िन्दगी सुख भी है...

3
मैं रंगों के संग खेलता
रंग मेरे संग खेलते
रंगों के संग खेलता-खेलता
मैं इक रंग हो गया
कुछ बनने, कुछ न बनने से
बेफिक्र, बेपरवाह...

4
बिखरने के लिए लोग ही लोग
पर एक होने के लिए
एक भी मुश्किल...
दरख़्त पंछियों को जन्म नहीं देते
पर पंछियों को घर देते हैं...

... फिर भी यहाँ जिंदा है हम, गैरों के दिए हुए नाम इंडिया से। "


नहीं स्वतंत्र अब तक हम, हमें स्वतंत्र होना है, कुछ झूठे देशभक्तों ने, किये जो पाप, धोना है।

"भारत मानव जाति के विकास का उद्गम स्थल तथा मानव बोली का जन्म स्थान है और साथ ही यह देश गाथाओं एवं प्रचलित परंपराओं का कर्मस्थल तथा इतिहास का जनक है। केवल भारत में ही मानव इतिहास की हमारी सबसे मूल्यवान और शिक्षाप्रद सामग्री खजाने के रूप में सहेजी गयी है। "

" आंसू टपक रहे है, भारत के हर बाग से,
... शहीदों की रूहे लिपट के रोती है, हर खासो आम से,
अपनों ने बुना था हमें, भारत के नाम से,
... फिर भी यहाँ जिंदा है हम, गैरों के दिए हुए नाम इंडिया से। "

हम बनायेंगे नया हिंदुस्तान
मेरा भारत महान
हमे गर्व है की हम हिन्दुस्तानी हैं

बुधवार, 7 दिसंबर 2011

ये आधुनिकता की अंधी दौड़, न जाने कहाँ ले जायेगी ?

ये आधुनिकता की अंधी दौड़, न जाने कहाँ ले जायेगी ?
सोचता हू, तो डर जाता हू,
ये संसकृति, सिद्धांत और आदर्शो की विरासत, अब कब तक टिक पायेगी ?
ये आधुनिकता की अंधी दौड़, न जाने कहाँ ले जायेगी ?

अब ग्रहस्थी के दोनों स्तंभ, सुख के संसाधन जुटाते है,
चार हाथों से अर्थ बटोर, वे फुले ना समाते है,
कोई शक नहीं जो ये पीढ़ी, जरुरत से कुछ जयादा जुटा लाएगी,
पर क्या, भावना, लगाव और शांति की अनमोल निधि, अक्षुण रख पायेगी ?
ये आधुनिकता की अंधी दौड़, न जाने कहाँ ले जायेगी ?

वो नारी जिसे करूणा, दया और प्रेम की मूर्ति कहा जाता था,
जिनके त्याग और मातृत्व की ताकत के आगे, नर खुद को झुका पाता था,
आधुनिकता के इस दौर में उसने खुद को किस हद तक निचे ला डाला है,
फिर भी दंभ देखो, कहती है खुद को किस खूबी से संभाला है,
ये झूठे दिखावे और बनावटी प्रतिस्प्रधा ही होड़ में,
क्या कुछ ना कर जाएँगी, और तनिक ना शर्मायेंगी,
पर जो प्रकृति है उनका और कर्तव्य भी, उसे करते खुद को पिछडा पाएँगी,
ये आधुनिकता की अंधी दौड़, न जाने कहा ले जायेगी ?
सोचता हू , तो कॉप जाता हू,
ये मातृत्व, त्याग और प्रेम की मिसाल, क्या अब खोजने से भी मिल पायेगी ?