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मंगलवार, 13 मार्च 2012

मन की चंचलता रोकना ही योग है



चित्तवृतियों का निरोध करना यानी चित्त की चंचलता को रोके रखना ही योग है।
योग के आठ अंग हैं -यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि।
अगर किसी शख्स को ज्ञान मिल जाए तो वह अपना मन नियंत्रित कर सकता है।
शोक, मोह, ईर्ष्या, द्वेष से परे रहने वाला शख्स ही असली योगी कहलाता है। ऐसा शख्स ही अपने मन को स्थिर कर पाने में सफल हो सकता है।
तप, स्वाध्याय और ईश्वर की शरण लेना ही वास्तविक क्रिया योग कहलाता है।

समाधि हासिल करने के लिए मानसिक क्लेशों को दूर करना जरूरी है।
योग को अपनाने से अशुद्धि का नाश होता है और उससे ज्ञान और विवेक की प्राप्ति होती है।
साक्षी भाव से जीवन जीना ही योग का असली लक्ष्य है।
सत्य को मन, वचन और कर्म से अपनाने पर वास्तविक धर्म की प्राप्ति होती है।
दूसरों की वस्तु चोरी न करने के स्वभाव से सभी रत्नों की प्राप्ति होती है।

संयम रखने से ज्ञान की प्राप्ति होती है।
बर्फ और पानी एक ही चीज हैं, बस उनमें अवस्थाओं का अंतर हैं। ठीक इसी तरह प्रकृति भी तमाम रूपों में पसरी हुई है।
कष्ट, निराशा, नर्वसनेस और सांस का तेज चलना इस बात के संकेत हैं कि आपका मन शांत नहीं है।
-योग अच्छे-बुरे और जन्म-मृत्यु़ के पार जाने की कला है।
-मौत पर जीवन खत्म नहीं होता, बल्कि तब संभावना का एक और दरवाजा खुलता है।

-चेतन और अचेतन एक ही अस्तित्व के दो छोर हैं। चेतन अचेतन हो सकता है और अचेतन चेतन होता रहता है।
-जो अणु में है, वह विराट में भी है। जो बूंद में है, वही विराट सागर में भी है।
-देना ही पाना है। जब बूंद सागर में मिलती है तो वह खुद सागर हो जाती है।
-मनुष्य का व्यक्तित्व सात चक्रों में बंटा हुआ है। इन चक्रों में अनंत ऊर्जा सोई हुई है। हर चक्र खोला जा सकता है।
-ध्यान करने से चक्र सक्रिय हो जाते हैं।
-खुद के प्रति होश से भरना साधना है और आखिरकार होश न रह जाए, खुद खो जाए, यह सिद्धि है।
-जैसे ही मैं खो जाता है, सब मिल जाता है।

किस्मत की चड्डी

कुछ लोग चांदी के चम्मच में किस्मत की चड्डी पहन कर पैदा होते है .....जो काबिलियत की नाड़ी से बंधी रहती है

शनिवार, 10 मार्च 2012

अगर आप आशीर्वाद को मानते हो

अगर आप आशीर्वाद को मानते हो
तो आप को श्राप, हालाकला को भी मनना होगा .... 
इस लिए अपने कर्म को सोच समझ कर ही करे

रण का तुम आह्वान करो

पतन नहीं
उत्थान करो
रण का तुम
आह्वान करो
लक्ष्य भले ही
दुष्कर हो
अर्जुन सा
शर-संधान करो
भय का जो
अंधियारा हो
विफल प्रयास जो
सारा हो
एक ध्येय पर
अड़ जाओ
देह की माना
सीमा है
अन्तर की  सीमा
मत बांधो
 
श्राप को भी
वरदान करो 
- Sonal Rastogi....

सफलता का पहला सूत्र आत्म विश्वास ही है। - पं. विजयशंकर मेहता


अक्सर हम दुनिया जीतने निकल पड़ते हैं लेकिन खुद पर ही भरोसा नहीं होता। खुद पर भरोसे का मतलब है आत्म विश्वास से। जब भी कोई मुश्किल काम करने जाते हैं तो एक बार सभी के हाथ कांप ही जाते है।

सफलता का पहला सूत्र आत्म विश्वास ही है। अगर हम खुद पर ही भरोसा नहीं कर सकते, खुद की योग्यता का अनुमान ही नहीं लगा सकते हैं तो फिर किसी पर भी किया गया विश्वास हमारे काम नहीं आ सकता।

रामायण के एक प्रसंग में चलते हैं। वानरों के सामने समुद्र लांघने का बड़ा लक्ष्य था। समुद्र पास बसी लंका से सीता की खोज खबर लाना थी। जामवंत ने कहा कौन है जो समुद्र पार जा सकता है। सबसे पहले आगे आए अंगद। बाली के पुत्र अंगद में अपार बल था लेकिन उन्होंने कहा कि मैं समुद्र लांघ तो सकता हंू लेकिन लौटकर आ सकूंगा या नहीं इस पर संदेह है। जामवंत ने उसे रोक दिया। क्योंकि उसमें आत्म विश्वास की कमी थी।

जामवंत की नजर हनुमान पर पड़ी। जो शांत चित्त से समुद्र को देख रहे थे जैसे ध्यान में डूबे हों। जामवंत ने समझ लिया कि हनुमान ही हैं जो पार जा सकते हैं। क्योंकि इतनी विषम परिस्थिति में भी वो शांत चित्त हैं। जामवंत ने हनुमान को उनका बल याद दिलाया और बचपन की घटनाएं सुनाई।

हनुमान विश्वास से भर गए। एक ही छलांग में समुद्र लांघने को तैयार हो गए। उनका यह विश्वास काम आया। समुद्र लांघा, सीता का पता लगाया, और फिर इस पार लौट आए।

अंगद भी ये काम कर सकते थे लेकिन उनके भीतर खुद की योग्यता पर विश्वास नहीं था। इस आत्म विश्वास की कमी से वो एक बड़ा मौका चूक गए।


पं. विजयशंकर मेहता