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रविवार, 13 जून 2010

नजरिया

जो भी रचा है , मैंने
मे उसी का हिस्सा हूँ
पूरी तरह मोजूद हूँ उसमे
मेरा बहरिकरण और अंतःकरण
हर तरह से उत्तरदाई है
मे अपनी तमाम कमियों और अतियो मे सामिल हूँ
मेरे अज्ञान या मेरी लापरवाही से छुट गई है
जो गूंजाइशे
उसे मे पूरा नहीं कर संकुंगा उम्र भर
मै अपनी रची दुनिया के लिए दोषी हूँ
इसमे सामिल नहीं है
दुनिया भर के झगड़े, घर की परेशानी
पड़ोस के किस्से, दोस्तों की जरुरत
जानगया हूँ
ईश्वर ने रचा है मुझे
मै मनुष्य हूँ
मै मनुष्य होने की जिम्मेदारी से भाग नहीं सकता
अन्तःतह मै
निसंकोच कहूँगा
मै अपना नजरिया
अपनी सोच बदलूँगा ........
                                      अनूप पालीवाल  

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