ईमानदारी से
चाहता हूँ कहना
किमैं ईमानदार नहीं.
क्यों कि
जो कहता हूँ
वो करता नहीं
जो सोचता हूँ
वो होता नहीं
जो होता है
वो चाहता नहीं .
इसी ऊहापोह में
जीता चला जाता हूँ
क्षण - प्रतिक्षण
परिस्थितियों में
ढलता चला जाता हूँ.
जो बदल जाये
वक़्त के साथ
तो बताओ
वो कैसे
रह पायेगा ईमानदार
खुद की सोचों पर भी
बिठा देता हूँ कभी - कभी
अनदेखा पहरेदार
और मान लेता हूँ
कि
ज़िन्दगी जी रहा हूँ.
जब कि जनता हूँ
कि
पल पल मर रहा हूँ.
इसीलिए
कहता हूँ ईमानदारी से कि
मैं ईमानदार नहीं....
खुद के प्रति .....
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