मुखपृष्ठ

रविवार, 10 मई 2009

मदरस डे पर कुछ पंकितीय


माँ
शब्द सार है ब्रह्माण्ड का
तो ममता की महक है बचपन की झलक है
हमारे बेहतर कल के लिए ख्वाब संजोती पलक है
हम अपने फर्ज को निभाए
माँ के सपनों को सच कर दिखाए

पिता की अंगुली पकड़कर चलना सिखा
तो कंधे पर बैठकर दुनिया को देखा
इस भीड़ भरी दुनिया गुम न हो जाना
अपने पिता के बताये रास्तो पर चलना
- अनूप पालीवाल

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

Hey..
Nice poem......
keep writing..
All the best...for the next one...
Take care