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रविवार, 3 मई 2009

सिर्फ़ अनुभूति भर के लिए


प्रेम -रंग नहीं,पानी नहीं,उजाला नहीं,अन्धेरा नहीं,ताप नहीं,शीतलता नहीं,सुगन्ध है -सिर्फ़ अनुभूति भर के लिएप्रेम -
प्रकृति नहीं,सृष्टि नहीं,समुद्र नहीं,सूर्य नहीं,चन्द्र नहीं,पवन नहीं,सौन्दर्य है -सिर्फ़ सुख के लिएप्रेम -
साँस नहीं,धड़कन नहीं,चेतना नहीं,स्पर्श नहीं,स्पन्दन नहीं,अभिव्यक्ति नहीं,देह नहीं -सिर्फ़ आत्मा हैपरम तृप्ति और मोक्ष के लिए।

2 टिप्‍पणियां:

श्यामल सुमन ने कहा…

जिन्दगी तो बस मुहब्बत और मुहब्बत जिन्दगी।
तब सुमन दहशत में जीकर हाथ क्यों मलता रहा।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

अनिल कान्त ने कहा…

वाह भाई क्या बात कही आपने ....

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति