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गुरुवार, 3 सितंबर 2009

चलते रोज है पर

चलते रोज है पर मंजिल पर पहुंच नहीं पाते
दोस्तों से मिलते रोज है पर बात कर नहीं पाते

टीवी रोज देखते है पर घर वालो का हाल पुछ नहीं पाते
कॉलेज रोज जाते है पर पड़ कर नहीं पाते

वह रोज मिलती है पर इजहार कर नहीं पाते
पानी की कमी से हम रोज नाह नहीं पाते

जीने की आस मे जिंदगी जी नहीं पाते
हाथ छुते भी तो रिश्ते छोड़ नहीं पाते

पैसा ही सब कुछ है आज के समय मे दोस्तों
पैसा नहीं होता है तो अपने भी साथ रहा नहीं पाते

बुधवार, 2 सितंबर 2009

यही सच्ची सफलता है।

सदा मुस्कराना और सबको प्यार करना
गुणी जनों का सम्मान पाना
बच्चों के दिल में रहना
सच्चे आलोचकों से स्वीकृति पाना
झूठे दोस्तों की दगाबाज़ी को सहना
ख़ूबसूरती को सराहना
दूसरों में ख़ूबियाँ तलाशना
किसी उम्मीद के बिना
दूसरोंके लिये ख़ुद को अर्पित करना
उत्साह के साथ हँसना और खेलना
और मस्ती भरे तराने गाना,
इस बात का एहसास कि आपकी ज़िंदगी ने व्यक्तियों का जीवन आसान बनाया
यही सच्ची सफलता है।