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बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

हम और तुम

मेरे प्यार काम के साथ फुर्सत की घड़िया थी
तन्हाई थी बे खयाली थी बेफिक्री थी
और साथ मै थी
मुस्कुराती हर सुबह
और सपने सजाती हर शाम
उन् सपनों को पाने की तमन्ना
दिनों दिन बढने लगी
जैसे ख्वाहिसों को मंजिल मिल गई
इस ख्याल से की क्यों न जिंदगी मै रंग भरे
और बसाले साथ मै
अपनी दुनिया
समेट लेंगे हर लम्हा हर पल
और यूँ ही जिंदगी बिताएंगे मिलकर
" हम और तुम "

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया...