कट ही गई जुदाई भी कब यूँ हुआ के मर गए
तेरे भी दिन गुज़र गए मेरे भी दिन गुज़र गए
तू भी कुछ और है हम भी कुछ और है
जाने वो तू किधर गया जाने वो हम किधर गये
राहों में ही मिले थे हम राहें नसीब बन गायें
तू भी न अपने घर गया हम भी न अपने घर गये
वो भी गुबार -ऐ -ख़ाक था हम भी गुबार -ऐ -ख़ाक थे
वो भी कहीं बिखर गया हम भी कहीं बिखर गये
कोई किनार -ऐ -आब - ऐ -जू बैठा हुआ है सर झुकाए
कश्ती किधर गये जाने किधर भंवर गए
- अनूप पालिवाल , सेंधवा
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