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बुधवार, 1 अप्रैल 2009


"मुझे एक उद्धारक की तरह न देखें। इस विचार के कारण ही- कि कोई उद्धारक आ गया है, कोई मसीहा आ गया है- लोग वैसे ही जीते रहते हैं जैसे वे जीते रहे हैं। वे क्या कर सकते हैं? उनका कहना है कि सब कुछ तभी होगा जब कोई मसीहा आयेगा। यह उनका ढंग है रूपांतरण को टालने का, यह उनका ढंग है स्वयं को धोखा देने का। बहुत हो चुका, बहुत दे दिया धोखा स्वयं को। अब और नहीं। कोई मसीहा नहीं आने वाला। तुम्हें स्वयं कार्य करना होगा,तुम्हें स्वयं के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी निभानी होगी। और जब तुम ज़िम्मेदार होते हो तो सब कुछ स्वयं घटने लगता है।"
- ओशो

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