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सोमवार, 18 मई 2009

आज भी जब मुझे नींद आती नहीं
गिन के तारे कटती हैं रातें मेरी,
दर्द मेरा जब कोई समझता नहीं
याद आती है मां बस तेरी-बस तेरी।

आज मुझे भूख लगी, नहीं मिला खाना जो तो
मुझको जमाना वो पुराना याद आ गया।
बाबू, अम्मा और चाचा-चाची की भी याद आई,
पापा वाला गोदी ले खिलाना याद आ गया।

क्षुधा पीर बार-बार आई जो रुलाई जात
माई काम काज छोड आना याद आ गया।
भइया, राजाबाबू, सुग्गू कह के बहलाना मुझे,
आंचल की गोद में पिलाना याद आ गया।

पूरब प्रभात धोई-पोछि मुख काजर लाई
माथे पे ढिठौने का लगाना याद आ गया।
दिन के मध्यान भानु धूल, धरि, धाई,
धोईधीरज धराई धमकाना याद आ गया।

रात-रात जागकर खुद भीषण गर्मी में
आंचल की हवा दे सुलाना याद आ गया।
बीच रात आंख मेरी खुली जो अगर कभी
थपकी दे के माई का सुलाना याद आ गया।
आज जब रातें सारी कट जाएं तारे गिन
माई गाइ लोरी लाड लाना याद आ गया।

छोटे-छोटे पांवों पर दौड़कर भागा मैं
तो मम्मी वाला पीछे-पीछे आना याद आ गया।
यहाँ-वहाँ दौड़ते जो भुंइयां पे गिरा मैं
तो गिरकर रोना और चिल्लाना याद आ गया।
लाड लो लगाई, लचकाई लो उठाई गोद,
माई मन मोद का मनाना याद आ गया।
गोदी में उठाके फिर छाती से लगा के मुझे,
आंसुओं का मरहम लगाना याद आ गया।

बीए की पढ़ाई पास, पढ़ा जो पुराना पाठ,
पापा धर लेखनी लिखाना याद आ गया।
आज बात चली जो 'प्रदीप' घर बसाने की
तोमिट्टी का घरौंदा वो बनाना याद आ गया।।
- प्रदीप

रविवार, 10 मई 2009

मदरस डे पर कुछ पंकितीय


माँ
शब्द सार है ब्रह्माण्ड का
तो ममता की महक है बचपन की झलक है
हमारे बेहतर कल के लिए ख्वाब संजोती पलक है
हम अपने फर्ज को निभाए
माँ के सपनों को सच कर दिखाए

पिता की अंगुली पकड़कर चलना सिखा
तो कंधे पर बैठकर दुनिया को देखा
इस भीड़ भरी दुनिया गुम न हो जाना
अपने पिता के बताये रास्तो पर चलना
- अनूप पालीवाल

मंगलवार, 5 मई 2009

मिलेंजीवन के किसी मोड़ परयूँ ही

एक दिन कभीशायद हम फिर मिलेंजीवन के किसी मोड़ परयूँ ही भटकते हुएतब शायद हम ढोंग करेंएक-दूसरे को न जानने का।
या फिर हम पहचान लेंऔर थोड़ा मुस्कुरा कर कहें“अच्छा लगा तुमसे मिलकर”और कर के कुछ इधर-उधर क़ी बातेंअचानक कोई ज़रूरी काम याद आने की बात कहकरथोड़ा और मुस्कुराएंगेऔर अलग होंगें कह करफिर से मिलने क़ी उम्मीदों के बारें में ।
लेकिन ये सब कुछशुरू से ही झूठ होगाधोखा होगा ख़ुद से हीउस वक़्त हमे मिलना पसंद न आए शायदभारी लगे मुस्कुराना,दर्द दे बातें करनाऔर तो औरफिर से अलग होना भी परेशान करेगादिल रोएगा आँसू छिपाफिर से अलग होने क़ी बेबसी से।
लेकिन कभी नही रहाइतना समझदार ये दिलये फिर से मिलना चाहता हैबातें करना और मुस्कुराना चाहता हैज़ख़्मों को फिर से खोल-खोल करफिर-फिर से रोना चाहता है।

सबसे खूबसूरत वो

सबसे खूबसूरत वो समुद्र हैजो
अभी तक देखा नही गया है।
सबसे खूबसूरत वो बच्चा हैजो
अभी तक पैदा नही हुआ है ।
सबसे खूबसूरत वो फूल हैजो
अभी तक खिला नही है।
सबसे खूबसूरत वो सुबह हैजो
अभी आने वाली है।
सबसे खूबसूरत वो शब्द हैंजो
अभी कहे जाने हैं।
और सबसे खूबसूरत वो सन्देश हैंजो
अभी दिए जाने हैं

रविवार, 3 मई 2009

सिर्फ़ अनुभूति भर के लिए


प्रेम -रंग नहीं,पानी नहीं,उजाला नहीं,अन्धेरा नहीं,ताप नहीं,शीतलता नहीं,सुगन्ध है -सिर्फ़ अनुभूति भर के लिएप्रेम -
प्रकृति नहीं,सृष्टि नहीं,समुद्र नहीं,सूर्य नहीं,चन्द्र नहीं,पवन नहीं,सौन्दर्य है -सिर्फ़ सुख के लिएप्रेम -
साँस नहीं,धड़कन नहीं,चेतना नहीं,स्पर्श नहीं,स्पन्दन नहीं,अभिव्यक्ति नहीं,देह नहीं -सिर्फ़ आत्मा हैपरम तृप्ति और मोक्ष के लिए।

फर्क प्रेम और विनम्रता

पति के जन्मदिन पर पत्नी उन्हें तोहफा देती थी। वहीं पति भी पत्नी के जन्मदिन पर उसे तोहफा दिया करते थे। पत्नी गृहिणी थी। जाहिर था कि वह पति से ही पैसे लेकर अपनी पसंद के तोहफे उन्हें देती थी। तोहफे देते वक्त उसके मुंह से अनायास निकलता, लीजिए, मेरी तरफ से तोहफा!पति सोचते, पत्नी मेरे ही पैसे से मुझे मेरे जन्मदिन पर तोहफे देती है तो उसे अपना क्यों बता देती है। एक बार पति के जन्मदिन पर पत्नी ने एक शर्ट पति को प्रेजेंट की और कहा, मेरी ओर से इसे कबूल कीजिए।पति ने कहा, मैं तुम्हें तोहफा दूं या तुम मुझे तोहफा दो, बात तो एक ही है क्योंकि दोनों तोहफों में पैसा मेरा ही लगता है। फिर दोनों में फर्क क्या है?पत्नी को बहुत बुरा लगा। वह पति के मन में छुपे भाव को ताड गई। उसने संयम दिखाते हुए कहा, तुम्हारे और मेरे तोहफे में स्वामित्व के लिहाज से कोई फर्क नहीं है।मगर इस लिहाज से फर्क जरूर है कि जहां तुम्हारे तोहफे में पुरुषजन्य दर्प झलकता है वहीं मेरे तोहफे में प्रेम और विनम्रता होती है। ऐसा बेबाक जवाब सुनकर पति महोदय सकपका गए।

शक्ति प्रदान कर दें

भूत कि परिधि को पार कर,
बर्तमान का रचियतातथा भविष्य के अनन्त अज्ञातकी
ओर निरंतर बढ़ता वक़्त जब कभी थकता हैतो
पल भर को कहीँ रुकता हैऔर पीछे पलटकर देखता हैकि
कहीँ उसके स्मृति के किसी कोने मैंउसे
चन्द मुस्कराते चेहरे दिख जायं जोउसमें
नवीन उर्जा का संचार कर उसे आगे
बढने कि शक्ति प्रदान कर दें ।