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सोमवार, 2 अप्रैल 2012

शीशा हूँ हश्र क्या होगा

मेरे वजूद का रिश्ता ही आसमान से है
न जाने क्यूँ उन्हें शिकवा मेरी उड़ान से है

मुझे ये ग़म नहीं शीशा हूँ हश्र क्या होगा
मेरी तो जंग ही किसी चट्टान से है

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