पत्थर बिन दीवार बनाना, इन्सानों ने सीख लिया
पत्थर दिल इन्सान बनाना, भगवानों ने सीख लिया.
दूर हुए सब रिश्ते-नाते,दूर हुआ मिलना-जुलना
अपनों का किरदार निभाना बेगानों ने सीख लिया
प्रेम के इजहारों के दिन भी, त्यौहारों में बदले हैं
इनसे भी अब लाभ कमाना, बाज़ारों ने सीख लिया
कौन है हमको लूटने वाला काश कभी हम जान सकें
खादी में भी खुद को छुपाना मक्कारों ने सीख लिया
घड़ियाली आंसू बहते हैं, संसद के गलियारों में
ज्यूँ मछली से प्यार जताना, मछुआरों ने सीख लिया
एक नहीं लाखों मरते हैं, धरती के इक कंपन से
ढेरों कुनबे साथ जलाना, शमशानों ने सीख लिया
डोल गई दिल्ली की सत्ता, ऐसा मतिभ्रम खूब हुआ
जनता को ही मूर्ख बनाना, सरकारों ने सीख लिया.
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