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शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

बहार आने मै

बस इक झिझक है हाले दिल सुनाने मै
की तेरा जिक्र भी आएगा इस फ़साने मै 
बरस पड़ी थी जो रुखा से नकाब उठाने मै 
वो चांदनी है अभी मेरे गरीब खाने मै 
इसी मै इश्क की किस्मत बदल भी सकती थी 
जो वक़्त बीत गया मुझको आजमाने मै 
ये कह के टूट पड़ा शाखे -गुल से आखरी फुल 
अब और देर है कितनी बहार आने मै 
                                    -  कैफ़ी आजमी

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