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बुधवार, 28 दिसंबर 2011

हिंदी प्रेमियों के लिए खुसखबरी !


हिंदी प्रेमियों के लिए खुसखबरी !!!!!!

फेसबुक में अपनी प्रोफाइल में हिंदी में नाम कैसे लिखें !

आप सबसे पहले "Account setting खाता सेट्टिंग " में जाए ! फिर आप "name edit नेम एडिट" को क्लिक करें ! वहाँ पर प्रथम,मिडिल व लास्ट नाम हिंदी में भरें और डिस्प्ले नाम के स्थान पर अपना पूरा नाम हिंदी में भरें ! उसके बाद नीचे दिए विकल्प वाले स्थान में आप अपना नाम अंग्रेजी में भरने के बाद SAVE CHANGE ओके कर दें ! अब आपको कोई भी सर्च के माध्यम से तलाश भी कर सकता है और आपका नाम हर संदेश और टिप्पणी पर हिंदी में भी दिखाई देगा !

चीन, रूस, फ्रांस, इसराइल, जर्मनी, कोरीया जापान और इन जैसे कई अन्य देशों को देखें जिन्होने अपनी मातृभाषा के दम पर विकास किया है| इन देशों के लोग अँग्रेज़ी बोलने मे शर्म करते हैं और अपनी मातृभाषा को ज़्यादा महत्व देते हैं| प्रथम कक्षा से लेकर स्नातक स्तर तक इन देशों मे शिक्षा का माध्यम इनकी मातृभाषा ही है, अँग्रेज़ी नही| फिर भी ये हमसे कहीं आयेज हैं| आजकल हमारे विद्यालयों मे भारतीय नही अँग्रेज़ निकल रहे हैं जिन्हे अपनी संस्कृति सभ्यता की कोई जानकारी नही है| वो पाश्चात्य अश्लील सभ्यता का अंधानुकरण कर रहे हैं बस|

गुरुदेव रवींद्रनाथ टागॉर को नोबेल पुरुस्कर मिलने के बाद जब उनसे कहा गया कि आपके अंगेजी के कारण ही आपको नोबेल प्राइज़ मिला सका है, रवींद्रनाथ टागॉर दुनिया के सामने आ सका है, तब गुरुदेव ने कहा कि अंगेजी के कारण एक रवींद्रनाथ दुनिया के सामने आया लेकिन हज़ारो रवींद्रनाथ नष्ट हो गये |

हिंदी भारत में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। तभी तो देश के बाहर भी हिंदी ने अपना स्थान बना सकने में सफलता हासिल किया है। फ़िजी,नेपाल,मोरिशोस,गयाना,सूरीनाम यहाँ तक चाइना और रसिया में भी हिंदी अच्छी तरह बोली और पढ़ी जाती है।

जय हिन्द, जय भारत ! वन्दे मातरम !!

शनिवार, 24 दिसंबर 2011

शनिवार, 17 दिसंबर 2011

इश्वर आपकी ज़िन्दगी में







कितनी खूबसूरती से 
इश्वर आपकी ज़िन्दगी में 
हर एक दिन जोड़ता है .... 
इसलिए नही की 
आप को उसकी जरुरत है ... 
पर शायद इसलिए .. 
की किसी और को आप की ज्यादा जरुरत हैं ........
                                           -  अनूप पालीवाल

तुम्हारी यादो की गर्माहट

तुम्हारी यादो की गर्माहट मुझसे लिपटी रहती है
वर्ना इस सर्द दिसम्बर की हवाए मुझे निपटा देती
                                          -  अनूप पालीवाल

तुम्हारे दिमाग

मुझे अपने दिल में
कंही जगह दे दो
तुम्हारे दिमाग से
निकला जा रहा हु में
                            -  अनूप पालीवाल



शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011

1हाथ में पकड़ा फूल
चुपचाप कह सकता है
कि मैं अमन के लिए हूँ
पर हाथ में पकड़ी तलवार
बोलकर भी नहीं कह सकती
कि मैं अमन के लिए हूँ...

2
आसमान पर भले ही
आसमान जितना लिखा हो
कि ज़िन्दगी दु:ख है
तो भी
धरती पर आदमी
अपने बराबर तो लिख ही सकता है
कि ज़िन्दगी सुख भी है...

3
मैं रंगों के संग खेलता
रंग मेरे संग खेलते
रंगों के संग खेलता-खेलता
मैं इक रंग हो गया
कुछ बनने, कुछ न बनने से
बेफिक्र, बेपरवाह...

4
बिखरने के लिए लोग ही लोग
पर एक होने के लिए
एक भी मुश्किल...
दरख़्त पंछियों को जन्म नहीं देते
पर पंछियों को घर देते हैं...

... फिर भी यहाँ जिंदा है हम, गैरों के दिए हुए नाम इंडिया से। "


नहीं स्वतंत्र अब तक हम, हमें स्वतंत्र होना है, कुछ झूठे देशभक्तों ने, किये जो पाप, धोना है।

"भारत मानव जाति के विकास का उद्गम स्थल तथा मानव बोली का जन्म स्थान है और साथ ही यह देश गाथाओं एवं प्रचलित परंपराओं का कर्मस्थल तथा इतिहास का जनक है। केवल भारत में ही मानव इतिहास की हमारी सबसे मूल्यवान और शिक्षाप्रद सामग्री खजाने के रूप में सहेजी गयी है। "

" आंसू टपक रहे है, भारत के हर बाग से,
... शहीदों की रूहे लिपट के रोती है, हर खासो आम से,
अपनों ने बुना था हमें, भारत के नाम से,
... फिर भी यहाँ जिंदा है हम, गैरों के दिए हुए नाम इंडिया से। "

हम बनायेंगे नया हिंदुस्तान
मेरा भारत महान
हमे गर्व है की हम हिन्दुस्तानी हैं

बुधवार, 7 दिसंबर 2011

ये आधुनिकता की अंधी दौड़, न जाने कहाँ ले जायेगी ?

ये आधुनिकता की अंधी दौड़, न जाने कहाँ ले जायेगी ?
सोचता हू, तो डर जाता हू,
ये संसकृति, सिद्धांत और आदर्शो की विरासत, अब कब तक टिक पायेगी ?
ये आधुनिकता की अंधी दौड़, न जाने कहाँ ले जायेगी ?

अब ग्रहस्थी के दोनों स्तंभ, सुख के संसाधन जुटाते है,
चार हाथों से अर्थ बटोर, वे फुले ना समाते है,
कोई शक नहीं जो ये पीढ़ी, जरुरत से कुछ जयादा जुटा लाएगी,
पर क्या, भावना, लगाव और शांति की अनमोल निधि, अक्षुण रख पायेगी ?
ये आधुनिकता की अंधी दौड़, न जाने कहाँ ले जायेगी ?

वो नारी जिसे करूणा, दया और प्रेम की मूर्ति कहा जाता था,
जिनके त्याग और मातृत्व की ताकत के आगे, नर खुद को झुका पाता था,
आधुनिकता के इस दौर में उसने खुद को किस हद तक निचे ला डाला है,
फिर भी दंभ देखो, कहती है खुद को किस खूबी से संभाला है,
ये झूठे दिखावे और बनावटी प्रतिस्प्रधा ही होड़ में,
क्या कुछ ना कर जाएँगी, और तनिक ना शर्मायेंगी,
पर जो प्रकृति है उनका और कर्तव्य भी, उसे करते खुद को पिछडा पाएँगी,
ये आधुनिकता की अंधी दौड़, न जाने कहा ले जायेगी ?
सोचता हू , तो कॉप जाता हू,
ये मातृत्व, त्याग और प्रेम की मिसाल, क्या अब खोजने से भी मिल पायेगी ?

बुधवार, 30 नवंबर 2011

शब्दो से जताना छोड़

मेरी चुप्पी को वो समझ ना पाया कभी
इसिलए हमने शब्दो से जताना छोड़  दिया  
                           -  अनूप पालीवाल

बुधवार, 2 नवंबर 2011

जिंदगी की उलझने

जिंदगी की उलझने शरारतो को कम कर देती है 
और लोग समझते है की हम बहुत बदल गए है !

बुधवार, 26 अक्तूबर 2011

दिवाली शुभ ... हर चहरे पर ख़ुशी खूब हो ...

आप के दुश्मनों के मुह काले हो 
आप के हर कदम पर उजाले हो 
आप के पीछे टार्च लेकर चलने वाले 
आप से जलने वाले हो  
आप से जलने वाले हो ...

दिवाली शुभ ... हर चहरे पर ख़ुशी खूब हो ... 

शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

अपना चेहरा कभी अख़बार को देता हूँ ।

जो भी मिल जाता है घर बार को देता हूँ।
या किसी और तलबगार को देता हूँ।
धूप को दे देता हूँ तन अपना झुलसने के लिये
और साया किसी दीवार को देता हूँ।
जो दुआ अपने लिये मांगनी होती है मुझे
वो दुआ भी किसी ग़मख़ार को देता हूँ।
अब भी अगर कोई नहीं है, न सही
हक़ तो मैं पहले ही हक़दार को देता हूँ।
जब भी लिखता हूँ मैं अफ़साना यही होता है
अपना सब कुछ किसी किरदार को देता हूँ।
ख़ुद को कर देता हूँ कागज़ के हवाले अक्सर
अपना चेहरा कभी अख़बार को देता हूँ ।

मंगलवार, 16 अगस्त 2011

क्यों की विचार बदलेगा तो परिणाम बदलेगा .....

हमारा देश आज़ाद हुआ है मगर हमारे विचार आज भी गुलाम है स्वार्थ के, लालच के.... किसी को किसी भी तरह की हनि पहुंचाते वक़्त हम जरा भी इस देश इस समाज के बारे मै नहीं सोचते.... सिर्फ अपने फायदे के लिए.... क्यों की हमे अपना घर अपना परिवार दिखाई देता है
और हम आज ही के दिन याद करते है और भूल जाते है आने वाले छे महीने के लिए .... की कोई दिन आया था कभी देश का ....
सिर्फ जरुरत है विचार बदने की ....क्यों की विचार बदलेगा तो परिणाम बदलेगा ......

बुधवार, 27 जुलाई 2011

भ्रष्ट नेता चालीसा
l वाह रे वाह नेता दमदार l
ll कैसा फैलाया हैं मायाजाल ll
l हर क्षेत्र में ये पारंगत l
ll क्षण में बदले अपनी फितरत ll
l बुद्धिवान गुनी अति चातुर l
ll देश का पैसा खाने को आतुर ll
l चोर डाकू के तुम रखवाले l
ll इनकी मदद करे बिन पैसा ले ll
l देश दुनिया में आग लगाई l
ll अपने घर पर साज सजाई ll
l चले ये मंत्री सांप की चाल l
ll करे देश का बंटाधार ll
l करते-रहते गड़बड़ घोटाला l
ll अपने हाँथ करे मुंह काला ll
l एक दुसरे की कुर्सी खिंचावे l
ll अपने सिर के बाल नुचावें ll
l देश की जनता मरती भूखी-प्यासी l
ll देते नहीं एक भी सुखी रोटी ll
l नाम किया हैं अब बदनाम l
ll देश को करे लहुलुहान ll
l देश की जनता पर करे हैं वर l
ll मचा हैं कैसा हाहाकार ll
l भारत को नौच-नौच के खावे l
ll बन्दर जैसा नाच नचावे ll
l रावन होत अब शर्मिंदा l
ll मुझे बड़ा कौन ये दरिंदा ll
l जा-जय-जय इनकी सरकार l
ll बंद करो ये अत्याचार ll

बुधवार, 29 जून 2011

प्रेम युद्ध की तहर होता है

प्रेम युद्ध की तहर होता है ... ये शुरू तो आसानी से हो जाता है मगर ख़त्म आदमी के खात्मे पर ही होता है ....

शनिवार, 25 जून 2011

एक दोस्त बनाना

एक लाख दोस्त बनाना कोई चमत्कार नहीं है, चमत्कार है एक दोस्त बनाना, जो आप के खिलाफ खड़े एक लाख लोगो के बाद भी तुम्हारे साथ खड़ा हो...

अपने सत्रु से प्यार करो

आलस्य इन्सान का सबसे बड़ा सत्रु है - जवाहरलाला नेहरु
अपने सत्रु से प्यार करो - महात्मा गाँधी

यहाँ सत्य है ------

यहाँ सत्य है ------
लोगो के लिए आप अच्छे हो,
                      जब तक आप उनकी उम्मीदों को पूरा करो !
और सभी लोग अच्छे है, 
                      जब तक आप उनसे कोई उम्मीद ना करो .....

शुक्रवार, 24 जून 2011

तजुर्बा इन्सान को गलत फेसले से रोकता है ..... मगर तजुर्बा गलत फेसलो से ही आता है .....

गुरुवार, 23 जून 2011

रिश्ते मै उम्मीद

हर रिश्ते मै उम्मीद रखना छोड़ कर देखो ...
ये रिश्ते निभाना कितने आसान हो जाते है 

उम्मीद रखना ....
अपने आप को धोखा देना !
अपनी सोच अपनी कार्य शमता को कम करना ....
चिंता फिकर की सुरुआत करना ...जिसका कोई मतलब नहीं ...


मोहब्बत में नहीं है फ़र्क,

मोहब्बत में नहीं है फ़र्क, जीने और मरने का,
उसी को देखकर जीते हैं, जिस कातिल पर दम निकले!

बुधवार, 22 जून 2011

मंगलवार, 14 जून 2011

Jina isi Ka naam hai......


shangharsh hi Zindgi hai....

Upload By - Anoop Paliwal

Padna acha hai ...


Padna acha hai ...

Upload by - Anoop Paliwal

दोस्ती होती खुशी है जिंदगी के लिए ....





दोस्ती खुशी है जिंदगी के लिए ....

अपलोड बय- अनूप पालीवाल

Hemant Kumar-'Sooraj re jalte rehna'


Hemant Kumar-'Sooraj re jalte rehna(part 2)...' in 'Harischandra Taramati'(1963).The Composers are Laxmikant-Pyarelal.

Upload by - Anoop Paliwal

शुक्रवार, 3 जून 2011

मैं ईमानदार नहीं....


ईमानदारी से
चाहता हूँ कहना
कि
मैं ईमानदार नहीं.
क्यों कि
जो कहता हूँ
वो करता नहीं
जो सोचता  हूँ
वो होता नहीं
जो होता है
वो चाहता नहीं .
इसी ऊहापोह में
जीता  चला जाता  हूँ
क्षण - प्रतिक्षण
परिस्थितियों में
ढलता चला जाता हूँ.


जो बदल जाये
वक़्त के साथ
तो बताओ
वो कैसे
रह पायेगा ईमानदार
खुद की सोचों पर भी
बिठा  देता  हूँ कभी - कभी
अनदेखा पहरेदार
और मान लेता  हूँ
कि
ज़िन्दगी जी रहा  हूँ.
जब कि जनता  हूँ
कि
पल पल मर रहा  हूँ.
इसीलिए
कहता हूँ ईमानदारी से कि
मैं ईमानदार नहीं....
खुद के प्रति .....

बुधवार, 4 मई 2011

तुम्हारा ख़याल बुनता हूँ...

याद है तुम्हें..... वो रात
जब जिस्म की सलाइयों में....
दो रूहें पिरोकर हमने....ज़िन्दगी का पैरहन बुना था...
मगर एक रोज़ तुमने...किसी अजनबी से....
उसकी तिजारत कर ली....
उधेड़कर तुमने उसको....जाने कैसे...
किसी और सलाई में बुन डाला
और मैं...उधेड़ रूह में.....अब तक
तुम्हारा ख़याल बुनता हूँ...

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

बहार आने मै

बस इक झिझक है हाले दिल सुनाने मै
की तेरा जिक्र भी आएगा इस फ़साने मै 
बरस पड़ी थी जो रुखा से नकाब उठाने मै 
वो चांदनी है अभी मेरे गरीब खाने मै 
इसी मै इश्क की किस्मत बदल भी सकती थी 
जो वक़्त बीत गया मुझको आजमाने मै 
ये कह के टूट पड़ा शाखे -गुल से आखरी फुल 
अब और देर है कितनी बहार आने मै 
                                    -  कैफ़ी आजमी

गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

विचार जिन्दगी है क्यों की जैसा हम विचार करेंगे वैसे ही परिणाम सामने आएंगे और जिन्दगी के साथ हमारा भविष्य भी वैसा ही बन जायेगा ! विचार से ही हम गरीब है और विचार से ही हम आमिर है .... आज के समय मै सबसे ज्यादा गरीब सिर्फ विचार है .... क्यों की आज का युवा सोचता नहीं विचार करता नहीं है और भविष्य अंधकारमय हो जाता है ...

बुधवार, 20 अप्रैल 2011

मुझे लगता है लोकपाल बिल, भष्टाचार रोकने के लिए नहीं है, ये  भष्टाचार करने वालो के लिए कड़ी सजा का काम करेगा ..... और संसद मै पास होने के पहले ही लोकपाल बिल को ये नेता इतना लचीला कर देंगे की भष्टाचार से बचने का रास्ता भी निकाल लेंगे ......
जो खुद की सेवा करे, वो "नेता "
और जो जनता की सेवा करे वो "प्रणेता".......... 
नेताओ के तो कई उदहारण है इनकी तो गिनती ही नहीं है .....
पर "प्रणेता" के एक ही उदहारण " लालबहादुर शास्त्री"

रविवार, 10 अप्रैल 2011

ओशो प्रवचन राजनीति पर जो उन्होंने ३० वर्षो पहले दिया था। समय गुजर गया पर उनके कहे गए ये शब्द आज भी पूरी तरह से सत्य है ।

आज की राजनीति पर कुछ भी कहने के पहले दो बातें समझ लेनी जरूरी हैं। एक तो यह कि आज जो दिखाई पड़ता है, वह आज का ही नहीं होता, हजारों-हजारों वर्ष बीते हुए कल, आज में सम्मिलित होते हैं। जो आज का है उसमें कल भी जुड़ा है, बीते सब कल जुड़े हैं। और आज की स्थिति को समझना हो तो कल की इस पूरी श्रृंखला को समझे बिना नहीं समझा जा सकता। मनुष्य की प्रत्येक आज की घड़ी पूरे अतीत से जुड़ी हैएक बात !

और दूसरी बात राजनीति कोई जीवन का ऐसा अलग हिस्सा नहीं है, जो धर्म से भिन्न हो, साहित्य से भिन्न हो, कला से भिन्न हो। हमने जीवन को खंडों में तोड़ा है सिर्फ सुविधा के लिए। जीवन इकट्ठा है। तो राजनीति अकेली राजनीति ही नहीं है, उसमें जीवन के सब पहलू और सब धाराएँ जुड़ी हैं और जो आज का है, वह भी सिर्फ आज का नहीं है, सारे कल उसमें समाविष्ट हैं। यह प्राथमिक रूप से खयाल में हो तो मेरी बातें समझने में सुविधा पड़ेगी।

यह मैं क्यों बीते कलों पर इसलिए जोर देना चाहता हूं कि भारत की आज की राजनीति में जो उलझाव है, उसका गहरा संबंध हमारी अतीत की समस्त राजनीतिक दृष्टि से जुड़ा है।

जैसे, भारत का पूरा अतीत इतिहास और भारत का पूरा चिंतन राजनीति के प्रति वैराग सिखाता है। अच्छे आदमी को राजनीति में नहीं जाना है, यह भारत की शिक्षा रही है। और जिस देश का यह खयाल हो कि अच्छे आदमी को राजनीति में नहीं जाना है, अगर उसकी राजधानियों में सब बुरे आदमी इकट्ठे हो जायें, तो आश्चर्य नहीं है। जब हम ऐसा मानते हैं कि अच्छे आदमी का राजनीति में जाना बुरा है, तो बुरे आदमी का राजनीति में जाना अच्छा हो जाता है वह उसका दूसरा पहलू है।

हिंदुस्तान की सारी राजनीति धीरे-धीरे बुरे आदमी के हाथ में चली गयी है; जा रही है, चली जा रही। आज जिनके बीच संघर्ष नहीं है, वह अच्छे और बुरे आदमी के बीच संघर्ष है। इसे ठीक से समझ लेना ज़रूरी है। उस संघर्ष में कोई भी जीते, उससे हिंदुस्तान का बहुत भला नहीं होनेवाला है कौन जीतता है, यह बिलकुल गौण बात है। दिल्ली में कौन ताकत में जाता है, यह बिलकुल दो कौड़ी की बात है; क्योंकि संघर्ष बुरे आदमियों के गिरोह के बीच है।

हिंदुस्तान का अच्छा आदमी राजनीति से दूर खड़े होने की पुरानी आदत से मजबूर है
वह दूर ही खड़ा हुआ है। लेकिन इसके पीछे हमारे पूरे अतीत की धारणा है। हमारी मान्यता यह रही है कि अच्छे आदमी को राजनीति से कोई संबंध नहीं होना चाहिए। बर्ट्रेड रसल ने कहीं लिखा है, एक छोटा-सा लेख लिखा है। उस लेख का शीर्षकउसका हैडिंग मुझे पसंद पड़ा। हैडिंग है, दी हार्म, दैट गुड मैन डू’—नुकसान, जो अच्छे आदमी पहुँचाते हैं

अच्छे आदमी सबसे बड़ा नुकसान यह पहुँचाते हैं कि बुरे आदमी के लिए जगह खाली कर देते हैं। इससे बड़ा नुकसान अच्छा आदमी और कोई पहुंचा भी नहीं सकता। हिंदुस्तान में सब अच्छे आदमी भगोड़े रहे हैं।एस्केपिस्टरहे हैं। भागनेवाले रहे हैं. हिंदुस्तान ने उनको ही आदर दिया है, जो भाग जायें। हिंदुस्तान उनको आदर नहीं देता, जो जीवन की सघनता में खड़े हैं, जो संघर्ष करें, जीवन को बदलने की कोशिश करें।

कोई भी नहीं जानता कि अगर बुद्ध ने राज्य छोड़ा होता, तो दुनिया का ज्यादा हित होता या छोड़ देने से ज्यादा हित हुआ है। आज तय करना भी मुश्किल है। लेकिन यह परंपरा है हमारी, कि अच्छा आदमी हट जाये। लेकिन हम कभी नहीं सोचते, कि अच्छा आदमी हटेगा, तो जगह खाली तो नहीं रहती, ‘वैक्यूमतो रहता नहीं।
अच्छा हटता है, बुरा उसकी जगह भर देता है। बुरे आदमी भारत की राजनीति में तीव्र संलग्नता से उत्सुक हैं।

कुछ अच्छे आदमी भारत की आजादी के आंदोलन में उत्सुक हुए थे। वे राजनीति में उत्सुक नहीं थे। वे आजादी में उत्सुक थे। आजादी गयी। कुछ अच्छे आदमी अलग हो गये, कुछ अच्छे आदमी समाप्त हो गये, कुछ अच्छे आदमियों को अलग हो जाना पड़ा, कुछ अच्छे आदमियों ने सोचा, कि अब बात खत्म हो गयी।

खुद गांधी जैसे भले आदमी ने सोचा कि अब क्रांग्रेस का काम पूरा हो गया है, अब कांग्रेस को विदा हो जाना चाहिए। अगर गांधीजी की बात मान ली गई होती, तो मुल्क इतने बड़े गड्ढे में पहुंचता, जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।

बात नहीं मानी गयी, तो भी मु्ल्क गढ्ढे में पहुँचा है, लेकिन उतने बड़े गड्ढे में नहीं, जितना मानकर पहुंच जाता। फिर भी गांधीजी के पीछे अच्छे लोगों की जो जमात थी, विनोबा और लोगों की, सब दूर हट गये वह पुरानी भारतीय धारा फिर उनके मन को पकड़ गयी, कि अच्छे आदमी को राजनीति में नहीं होना चाहिए।

खुद गांधीजी ने जीवन भर बड़ी हिम्मत से, बड़ी कुशलता से भारत की आजादी का संघर्ष किया। उसे सफलता तक पहुंचाया। लेकिन जैसे ही सत्ता हाथ में आयी, गांधीजी हट गये। वह भारत का पुराना अच्छा आदमी फिर मजबूत हो गया। गांधी ने अपने हाथ में सत्ता नहीं ली, यह भारत के इतिहास का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है।

जिसे हम हजारों साल तक, जिसका नुकसान हमें भुगतना पड़ेगा। गांधी सत्ता आते ही हट गये। सत्ता दूसरे लोगों के हाथ में गयी। जिनके हाथ में सत्ता गयी, वे गांधी जैसे लोग नहीं थे। गांधी से कुछ संभावना हो सकती थी कि भारत की राजनीति में अच्छा आदमी उत्सुक होता
गांधी के हट जाने से वह संभावना भी समाप्त हो गयी।

फिर सत्ता के आते ही एक दौड़ शुरू हुई। बुरे आदमी की सबसे बड़ी दौड़ क्या है ? बुरा आदमी चाहता क्या है ? बुरे आदमी की गहरी से गहरी आकांक्षा अहंकार की तृप्ति हैइगोकी तृप्ति है। बुरा आदमी चाहता है, उसका अहंकार तृप्त हो और क्यों बुरा आदमी चाहता है कि उसका अहंकार तृप्त हो ?

क्योंकि बुरे आदमी के पीछे एकइनफीरियारिटी काम्प्लेक्स’, एक हीनता की ग्रंथि काम करती रहती है। जितना आदमी बुरा होता है, उतनी ही हीनता की ग्रंथि ज्यादा होती है।
और ध्यान रहे, हीनता की ग्रंथि जिसके भीतर हो, वह पदों के प्रति बहुत लोलुप हो जाता है। सत्ता के प्रति, ‘पावरके प्रति बहुत लोलुप हो जाता है। भीतर की हीनता को वह बाहर के पद से पूरा करना चाहता है।

बुरे आदमी को मैं, शराब पीता हो, इसलिए बुरा नहीं कहता। शराब पीने वाले अच्छे लोग भी हो सकते हैं। शराब पीने वाले बुरे लोग भी हो सकते हैं। बुरा आदमी इसलिए नहीं कहता, कि उसने किसी को तलाक देकर दूसरी शादी कर ली हो। दस शादी करने वाला, अच्छा आदमी हो सकता है। एक ही शादी पर जन्मों से टिका रहनेवाला भी बुरा हो सकता है।

मैं बुरा आदमी उसको कहता हूं, जिसकी मनोग्रंथि हीनता की है, जिसके भीतरइनफीरियारिटीका कोई बहुत गहरा भाव है। ऐसा आदमी खतरनाक है, क्योंकि ऐसा आदमी पद को पकड़ेगा, जोर से पकड़ेगा, किसी भी कोशिश से पकड़ेगा, और किसी भी कीमत, किसी भी साधन का उपयोग करेगा।
और किसी को भी हटा देने के लिए, कोई भी साधन उसे सही मालूम पड़ेंगे।

हिंदुस्तान में अच्छा आदमीअच्छा आदमी वही है, जो इनफीरियारिटीसे पीड़ित है और सुपीरियरिटीसे पीड़ित है। अच्छे आदमी की मेरी परिभाषा है, ऐसा आदमी, जो खुद होने से तृप्त है। आनंदित है। जो किसी के आगे खड़े होने के लिए पागल नहीं है, और किसी के पीछे खड़े होने में जिसे कोई अड़चन, कोई तकलीफ नहीं है। जहां भी खड़ा हो जाए वहीं आनंदित है।

ऐसा अच्छा आदमी राजनीति में जाये तो राजनीति शोषण होकर सेवा बन जाती है। ऐसा अच्छा आदमी राजनीति में जाये, तो राजनीति केवलपावर पालिटिक्स’, सत्ता और शक्ति की अंधी दौड हो जाती है। और शराब से कोई आदमी इतना बेहोश कभी नहीं हुआ, जितना आदमी सत्ता से औरपावरसे बेहोश हो सकता है। और जब बेहोश लोग इकट्ठे हो जायें सब तरफ से, तो सारे मुल्क की नैया डगमगा जाये इसमें कुछ हैरानी नहीं है ?

यह ऐसे ही हैजैसे किसी जहाज के सभी मल्लाह शराब पी लें, और आपस में लड़ने लगें प्रधान होने को ! और जहाज उपेक्षित हो जाये, डूबे या मरे, इससे कोई संबंध रह जाये, वैसी हालत भारत की है।

राजधानी भारत के सारे के सारे मदांध, जिन्हें सत्ता के सिवाय कुछ भी दिखायी नहीं पड़ रहा है, वे सारे अंधे लोग इकट्ठे हो गये हैं।

और उनकी जो शतरंज चल रही ही, उस पर पूरा मुल्क दांव पर लगा हुआ है। पूरे मुल्क से उनको कोई प्रयोजन नहीं है, कोई संबंध नहीं है। भाषण में वे बातें करते हैं, क्योंकि बातें करनी जरूरी हैं। प्रयोजन बताना पड़ता है। लेकिन पीछे कोई प्रयोजन नहीं है। पीछे एक ही प्रयोजन है भारत के राजनीतिज्ञ के मन में, कि मैं सत्ता में कैसे पहुंच जाऊं ? मैं कैसे मालिक हो जाऊं ? मैं कैसे नंबर एक हो जाऊं ? यह दौड़ इतनी भारी है,

और यह दौड़ इतनी अंधी है कि इस दौड़ के अंधे और भारी और खतरनाक होने का बुनियादी कारण यह है कि
भारत की पूरी परंपरा अच्छे आदमी को राजनीति से दूर करती रही है।