दरिद्रता श्रीरतया विराजते कुवस्त्रता शुभ्रतया विराजते।
कदन्नता चोष्णतया विराजते कुरूपता शीतया विराजते।।
हिंदी में भावार्थ- अगर मनुष्य में धीरज हो तो गरीबी की पीड़ा नहीं होती। घटिया वस्त्र धोया जाये तो वह भी पहनने योग्य हो जाता है। बुरा अन्न भी गरम होने पर स्वादिष्ट लगता है। शील स्वभाव हो तो कुरूप व्यक्ति भी सुंदर लगता है।
कदन्नता चोष्णतया विराजते कुरूपता शीतया विराजते।।
हिंदी में भावार्थ- अगर मनुष्य में धीरज हो तो गरीबी की पीड़ा नहीं होती। घटिया वस्त्र धोया जाये तो वह भी पहनने योग्य हो जाता है। बुरा अन्न भी गरम होने पर स्वादिष्ट लगता है। शील स्वभाव हो तो कुरूप व्यक्ति भी सुंदर लगता है।
अधमा धनमिच्छन्ति मानं च मध्यमाः।
उत्तमा मानमिच्छन्ति मानो हि महतां धनम्।।
हिंदी में भावार्थ-अधम प्रकृत्ति का मनुष्य केवल धन की कामना करता है जबकि मध्यम प्रकृत्ति के धन के साथ मान की तथा उत्तम पुरुष केवल मान की कामना करते हैं।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या- इस विश्व में धन की बहुत
महिमा दिखती है पर उसकी भी एक सीमा है। जिन लोगों के अपने चरित्र और
व्यवहार में कमी है और उनको इसका आभास स्वयं ही होता है वही धन के पीछे
भागते हैं क्योंकि उनको पता होता है कि वह स्वयं किसी के सहायक नहीं है
इसलिये विपत्ति होने पर उनका भी कोई भी अन्य व्यक्ति धन के बिना सहायक नहीं
होगा। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपने ऊपर यकीन तो करते हैं पर फिर भी धन
को शक्ति का एक बहुत बड़ा साधन मानते हैं। उत्तम और शक्तिशाली प्रकृत्ति के
लोग जिन्हें अपने चरित्र और व्यवहार में विश्वास होता है वह कभी धन की
परवाह नहीं करते।
उत्तमा मानमिच्छन्ति मानो हि महतां धनम्।।
हिंदी में भावार्थ-अधम प्रकृत्ति का मनुष्य केवल धन की कामना करता है जबकि मध्यम प्रकृत्ति के धन के साथ मान की तथा उत्तम पुरुष केवल मान की कामना करते हैं।
धन होना न होना परिस्थितियों पर निर्भर होता है। यह लक्ष्मी तो चंचला है।
जिनको तत्व ज्ञान है वह इसकी माया को जानते हैं। आज दूसरी जगह है तो कल
हमारे पास भी आयेगी-यह सोचकर जो व्यक्ति धीरज धारण करते हैं उनके लिये
धनाभाव कभी संकट का विषय नहीं रहता। जिस तरह पुराना और घटिया वस्त्र धोने
के बाद भी स्वच्छ लगता है वैसे ही जिनका आचरण और व्यवहार शुद्ध है वह
निर्धन होने पर भी सम्मान पाते हैं। पेट में भूख होने पर गरम खाना हमेशा
ही स्वादिष्ट लगता है भले ही वह मनपसंद न हो। इसलिये मन और विचार की शीतलता
होना आवश्यक है तभी समाज में सम्मान प्राप्त हो सकता है क्योंकि भले ही
समाज अंधा होकर भौतिक उपलब्धियों की तरफ भाग रहा है पर अंततः उसे अपने लिये
बुद्धिमानों, विद्वानों और चारित्रिक रूप से दृढ़ व्यक्तियों की सहायता
आवश्यक लगती है। यह विचार करते हुए जो लोग धनाभाव होने के बावजूद अपने
चरित्र, विचार और व्यवहार में कलुषिता नहीं आने देते वही उत्तम पुरुष हैं।
ऐसे ही सज्जन पुरुष समाज में सभी लोगों द्वारा सम्मानित होते हैं।
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