सच्चे मित्र की तलाश करेंगे तो
सारी जिन्दगी गुजर जाएगी तो भी नहीं मिलेगा
क्यों की समुद्र मै मोती तलाश ने के बराबर है
तो पत्थरों मै हिरा तलाश ने के बराबर है
सच्चा मित्र मिल सकता है
जब आप
खुद को पानी बना ले
दोस्त आयेगा खुद ही पानी मै
घुल जायेगा, मिल जायेगा
जो न मिल पाए
ओ छट जायेगा, हट जायेगा
सच्चा मित्र मिल जायेगा
कभी भी कोई भी इन्सान किसी को बदल नहीं सकता, कोई हमे देख कर खुद को बदल ले वही हमारा मित्र है
शनिवार, 4 दिसंबर 2010
मंगलवार, 23 नवंबर 2010
हम तुम्हारे तब भी थे
कहने को तो हम, खुश अब भी हैं
हम तुम्हारे तब भी थे, हम तुम्हारे अब भी हैं
हम तुम्हारे तब भी थे, हम तुम्हारे अब भी हैं
रूठने-मनाने के इस खेल में, हार गए हैं हम
हम तो रूठे तब ही थे, आप तो रूठे अब भी हैं
हम तो रूठे तब ही थे, आप तो रूठे अब भी हैं
मेरी ख़ता बस इतनी है, तुम्हारा साथ चाहता हूँ
तब तो पास होके दूर थे, और दूरियाँ अब भी हैं
तब तो पास होके दूर थे, और दूरियाँ अब भी हैं
मुझसे रूठ के दूर हो, पर एहसास तो करो
प्यासे हम तब भी थे, प्यासे हम अब भी हैं
प्यासे हम तब भी थे, प्यासे हम अब भी हैं
इस इंतज़ार में मेरा क्या होगा, तुम फिक्र मत करना
सुकून से हम तब भी थे, सुकून से हम अब भी हैं
सुकून से हम तब भी थे, सुकून से हम अब भी हैं
बस थोड़ा रूठने के अंजाम से डरते हैं
डरते हम तब भी थे, डरते हम अब भी हैं
डरते हम तब भी थे, डरते हम अब भी हैं
हमारी तमन्ना कुछ ज़्यादा नहीं थी, जो पूरी न होती
कम में गुज़ारा तब भी था, कम में गुज़ारते अब भी हैं
कम में गुज़ारा तब भी था, कम में गुज़ारते अब भी हैं
चलते हैं तीर दिल पे कितने, जब तुम रूठ जाते हो
ज़ख्मी हम तब भी थे, ज़ख्मी हम अब भी हैं
ज़ख्मी हम तब भी थे, ज़ख्मी हम अब भी हैं
मेरी मासूमियत को तुम, ख़ता समझ बैठे हो
मासूम हम तब भी थे, मासूम हम अब भी हैं
मासूम हम तब भी थे, मासूम हम अब भी हैं
आप हमसे रूठा न करें, बस यही इल्तिजा है
फ़रियादी हम तब भी थे, फ़रियादी हम अब भी हैं
फ़रियादी हम तब भी थे, फ़रियादी हम अब भी हैं
तुम हो किस हाल में, कम से कम ये तो बता दो
बेखब़र हम तब भी थे, बेखब़र हम अब भी हैं
बेखब़र हम तब भी थे, बेखब़र हम अब भी हैं
जो याद आजाये तू ...
जो याद आजाये तू ...
तो भीगे लम्हात लिखू
महकती हुई बात लिखू
बहकता हुआ साथ लिखू
जो याद ....
रात गुजरती नहीं
दिन ढलता नहीं
कोई कुछ कहता है
मै सुनता नहीं
जो याद ....
तुझसे मिलने की चाहत रहती है
ये सांसे हर पल कहती है
तू मेरे जिस्म मै बहती है
पिघलती, जलती, मचलती है
जो याद ...
तो भीगे लम्हात लिखू
महकती हुई बात लिखू
बहकता हुआ साथ लिखू
जो याद ....
रात गुजरती नहीं
दिन ढलता नहीं
कोई कुछ कहता है
मै सुनता नहीं
जो याद ....
तुझसे मिलने की चाहत रहती है
ये सांसे हर पल कहती है
तू मेरे जिस्म मै बहती है
पिघलती, जलती, मचलती है
जो याद ...
ईश्वर का रूप है
ईश्वर का रूप है
धुप है छाँव है गाँव है
जो पार लगा दे वो नाव है
सुख का आंचल है
ममता का जल है
इनके कदमो तले
हमारा बेहतर कल है
धुप है छाँव है गाँव है
जो पार लगा दे वो नाव है
सुख का आंचल है
ममता का जल है
इनके कदमो तले
हमारा बेहतर कल है
रविवार, 21 नवंबर 2010
अपेट लिया जनता का माल....
मनमोहन जी आपके सत्ता के लालच ने यह कैसा सिला दिया.....
खजाना जनता ने भरा .....
और आप के साथी भ्रष्टो ने लुट लिया ...
ओ ४० चोर है तो आप अलीबाबा है.....
ओ डकैत है तो आप सरदार है....
समझ मै नहीं आता की आप अपनी सत्ता की सलामती के लिए
कितने लोगो के घर भरोगे
और जनता के पैसे लूटोगे ....
और तो और ...
महंगाई बढाकर चोरो के पेट भर दिए...
और गरीबो को मौत के दरवाजे पार खड़ा कर दिया ....
वाह री सरकार... तेरा कमाल.... अपेट लिया जनता का माल....
ये तो कुछ ही घोटाले है .... नजाने कितने राज दफ़न कर डाले है
खजाना जनता ने भरा .....
और आप के साथी भ्रष्टो ने लुट लिया ...
ओ ४० चोर है तो आप अलीबाबा है.....
ओ डकैत है तो आप सरदार है....
समझ मै नहीं आता की आप अपनी सत्ता की सलामती के लिए
कितने लोगो के घर भरोगे
और जनता के पैसे लूटोगे ....
और तो और ...
महंगाई बढाकर चोरो के पेट भर दिए...
और गरीबो को मौत के दरवाजे पार खड़ा कर दिया ....
वाह री सरकार... तेरा कमाल.... अपेट लिया जनता का माल....
ये तो कुछ ही घोटाले है .... नजाने कितने राज दफ़न कर डाले है
मंगलवार, 9 नवंबर 2010
संभाल कर रखना
अपने को एक पूंजी की तरह
संभाल कर रखना
क्योकि
केश, लडकिया और नाख़ून
अपनी जगह से एक बार गिरकर
कहीं के नहीं रहते
संभाल कर रखना
क्योकि
केश, लडकिया और नाख़ून
अपनी जगह से एक बार गिरकर
कहीं के नहीं रहते
दिल्लाला हो जाता है
दिल कोइला है
काला
जब इसे प्यार की चिंगारी लगाती है तो
जलता है
और
विश्वास की हवा मै तेज लपटे उठती है
और गहराई से जलता है
कुंदन की तरह हो जाता है
चन्दन की तरह खुशबु फेलाता है
लाल होता है
गहरा लाल
खून की तरह रगों मै बहता लाल
गुलाब की तरह खिलता लाल
सूरज की तरह निकलता लाल
दिल्लाला हो जाता है
दिलदार हो जाता है
काला
जब इसे प्यार की चिंगारी लगाती है तो
जलता है
और
विश्वास की हवा मै तेज लपटे उठती है
और गहराई से जलता है
कुंदन की तरह हो जाता है
चन्दन की तरह खुशबु फेलाता है
लाल होता है
गहरा लाल
खून की तरह रगों मै बहता लाल
गुलाब की तरह खिलता लाल
सूरज की तरह निकलता लाल
दिल्लाला हो जाता है
दिलदार हो जाता है
रविवार, 7 नवंबर 2010
शनिवार, 6 नवंबर 2010
गुरुवार, 4 नवंबर 2010
शुभ दीपावली
विशाल अथाह, अनगिनत, अनंत, घनघोर
कालमय अँधेरा
और
एक छोटा दिया
छोटी बाती
जरा सा तेल
और छोटी सी जलती लो
अँधेरे को चीरती, भेदती, काटती किरने
अपने प्रभाव से कालमय अँधेरे को परास्त करती
इस प्रयास मै दीपक अपने साथ
बाती, तेल और छोटे मोटे साधनों की आहुति देता है
क्या हम ?
हमारा जीवन
हमारा मूल्य
हमारी अहमियत
हमारी उपयोगिता
इस छोटे से दीपक से भी कम है ....?
प्रयास करे, दीपक बने
सब की रह आसान और रोशन करे ...
शुभ दीपावली
कालमय अँधेरा
और
एक छोटा दिया
छोटी बाती
जरा सा तेल
और छोटी सी जलती लो
अँधेरे को चीरती, भेदती, काटती किरने
अपने प्रभाव से कालमय अँधेरे को परास्त करती
इस प्रयास मै दीपक अपने साथ
बाती, तेल और छोटे मोटे साधनों की आहुति देता है
क्या हम ?
हमारा जीवन
हमारा मूल्य
हमारी अहमियत
हमारी उपयोगिता
इस छोटे से दीपक से भी कम है ....?
प्रयास करे, दीपक बने
सब की रह आसान और रोशन करे ...
शुभ दीपावली
बुधवार, 27 अक्तूबर 2010
हम और तुम
मेरे प्यार काम के साथ फुर्सत की घड़िया थी
तन्हाई थी बे खयाली थी बेफिक्री थी
और साथ मै थी
मुस्कुराती हर सुबह
और सपने सजाती हर शाम
उन् सपनों को पाने की तमन्ना
दिनों दिन बढने लगी
जैसे ख्वाहिसों को मंजिल मिल गई
इस ख्याल से की क्यों न जिंदगी मै रंग भरे
और बसाले साथ मै
अपनी दुनिया
समेट लेंगे हर लम्हा हर पल
और यूँ ही जिंदगी बिताएंगे मिलकर
" हम और तुम "
तन्हाई थी बे खयाली थी बेफिक्री थी
और साथ मै थी
मुस्कुराती हर सुबह
और सपने सजाती हर शाम
उन् सपनों को पाने की तमन्ना
दिनों दिन बढने लगी
जैसे ख्वाहिसों को मंजिल मिल गई
इस ख्याल से की क्यों न जिंदगी मै रंग भरे
और बसाले साथ मै
अपनी दुनिया
समेट लेंगे हर लम्हा हर पल
और यूँ ही जिंदगी बिताएंगे मिलकर
" हम और तुम "
गलतियों के गुलाम...
कोई भी निराशावादी आज तक तारो के रहसीय को नहीं जान पाया है और न ही उसने किसी अज्ञात स्थान की खोज की है या मनुष्य जाती के लिए वह कोई नया द्वार खोल सका है _ हेलेन केलर
कर्म करने से हमेशा ख़ुशी हासिल हो, यह जरुरी नहीं लेकिन बिना कर्म किये तो ख़ुशी मिल ही नहीं सकती है !
_ महाभारत
विजेता कभी नहीं थकता और थकने वाला कभी नहीं जीतता .... !
_ मेकाले डेन
हमें आगे बढने से रोकने वाली रूकावटे हमारे दिमाग में ही होती है !
_ गाँधी जी
हमारा जीवन वही होता है जैसा हमारे विचार उसे बनाते है !
_ मार्क्स अरिलियन्स
बहुत सारे लोग कड़ी मेहनत करते है इस लिए आपको उनसे भी ज्यादा कड़ी मेहनत करना पड़ेगी !
_ लक्ष्मी मित्तल
सपने इस लिए जरुरी है की हम चीजो को होने से पहले देख सके, जब तक आप सपने नहीं देखोगे हकीकत कैसे देखोगे !
_ अजीम प्रेम जी
पैसे की भूख नहीं होनी चाहिए सिर्फ काम करने मै मजा आना चाहिए, बाकि सब अपने आप हो जाता है !
_ बिल गेट्स
मुझमे कुछ विशेष नहीं साधारण मनुष्य हूँ बस लगन से सही दिशा मै मेहनत की कोशिश करता हूँ बाकि ईश्वर का आशीर्वाद है !
_ अमिताभ बच्चन
अक्सर हम भाग्य और लोगो को दोष देते है, मगर हम अपनी गलतियों को न ही सोचते है, खोजते है न ही खत्म करते है, क्योकि हम स्वयं अपनी गलतियों के गुलाम है ! _ अनूप पालीवाल
कर्म करने से हमेशा ख़ुशी हासिल हो, यह जरुरी नहीं लेकिन बिना कर्म किये तो ख़ुशी मिल ही नहीं सकती है !
_ महाभारत
विजेता कभी नहीं थकता और थकने वाला कभी नहीं जीतता .... !
_ मेकाले डेन
हमें आगे बढने से रोकने वाली रूकावटे हमारे दिमाग में ही होती है !
_ गाँधी जी
हमारा जीवन वही होता है जैसा हमारे विचार उसे बनाते है !
_ मार्क्स अरिलियन्स
बहुत सारे लोग कड़ी मेहनत करते है इस लिए आपको उनसे भी ज्यादा कड़ी मेहनत करना पड़ेगी !
_ लक्ष्मी मित्तल
सपने इस लिए जरुरी है की हम चीजो को होने से पहले देख सके, जब तक आप सपने नहीं देखोगे हकीकत कैसे देखोगे !
_ अजीम प्रेम जी
पैसे की भूख नहीं होनी चाहिए सिर्फ काम करने मै मजा आना चाहिए, बाकि सब अपने आप हो जाता है !
_ बिल गेट्स
मुझमे कुछ विशेष नहीं साधारण मनुष्य हूँ बस लगन से सही दिशा मै मेहनत की कोशिश करता हूँ बाकि ईश्वर का आशीर्वाद है !
_ अमिताभ बच्चन
अक्सर हम भाग्य और लोगो को दोष देते है, मगर हम अपनी गलतियों को न ही सोचते है, खोजते है न ही खत्म करते है, क्योकि हम स्वयं अपनी गलतियों के गुलाम है ! _ अनूप पालीवाल
मंगलवार, 26 अक्तूबर 2010
शनिवार, 16 अक्तूबर 2010
तू नहीं मिला था जब
तू नहीं मिला था जब
अकेला था मगर इतना नहीं था
रास्ता तो था मेरे साथ मगर
मंजिल का पता नहीं था
तुझसे मिला तो लगा जिंदगी को
मैने इस तरह कभी जिया तो नहीं था
जो खुशबु बिखेरता है मेरे हर सु
वो तू था गुलाब नहीं था
भीगता रहा हूँ उम्र भर धुप मै
पहले कभी गेसुओ का सहारा नहीं था
आज जो लिखा है मैने तुम्हारे लिए
पहले कभी इस तरह लिखा नहीं था
तू नहीं मिला था जब
अकेला था मगर इतना नहीं था
अकेला था मगर इतना नहीं था
रास्ता तो था मेरे साथ मगर
मंजिल का पता नहीं था
तुझसे मिला तो लगा जिंदगी को
मैने इस तरह कभी जिया तो नहीं था
जो खुशबु बिखेरता है मेरे हर सु
वो तू था गुलाब नहीं था
भीगता रहा हूँ उम्र भर धुप मै
पहले कभी गेसुओ का सहारा नहीं था
आज जो लिखा है मैने तुम्हारे लिए
पहले कभी इस तरह लिखा नहीं था
तू नहीं मिला था जब
अकेला था मगर इतना नहीं था
सोमवार, 13 सितंबर 2010
अच्छे लोग
अच्छे लोग
दिख सकते हैं कहीं भी
अगर आपके पास हो पारख़ी नज़र
और साफ़-सुथरा दिल
अच्छे लोग
होते हैं बेहद साफ़
झरने के पानी की तरह
फूल की खुशबू की तरह
पहाड़ों से आती हवा की तरह
अच्छे लोग
इतने अच्छे होते हैं
कि बच्चे भी उन्हें पहचान सकते हैं
बेहद आसानी से
अच्छे लोग
इतने सीधे होते हैं
कि बहरूपिये उनसे चिढ़ते हैं
कि वो कर नहीं पाते
उनके सीधेपन की नक़ल
अच्छे लोग
ज़रा ज़्यादा ही ईमानदार होते हैं
इसलिए आलोचनात्मक होते हैं आमतौर पर
और थोड़े डरपोक भी
अच्छे लोगों की
सबसे बड़ी गड़बड़ी
यही होती है
कि जहाँ उन्हें साबित होना चाहिए समझदार
वहाँ वे साबित होते हैं बेहद अनाड़ी
अच्छे लोगों की
सबसे बड़ी खूबी यही होती है
कि वे अच्छे होते हैं
और अच्छे बने रहना चाहते हैं
हर हाल में
अच्छे लोग
इतने अच्छे होते हैं
कि एक अदना सा कवि भी
लिख सकता है उन पर
एक सबसे अच्छी कविता
दिख सकते हैं कहीं भी
अगर आपके पास हो पारख़ी नज़र
और साफ़-सुथरा दिल
अच्छे लोग
होते हैं बेहद साफ़
झरने के पानी की तरह
फूल की खुशबू की तरह
पहाड़ों से आती हवा की तरह
अच्छे लोग
इतने अच्छे होते हैं
कि बच्चे भी उन्हें पहचान सकते हैं
बेहद आसानी से
अच्छे लोग
इतने सीधे होते हैं
कि बहरूपिये उनसे चिढ़ते हैं
कि वो कर नहीं पाते
उनके सीधेपन की नक़ल
अच्छे लोग
ज़रा ज़्यादा ही ईमानदार होते हैं
इसलिए आलोचनात्मक होते हैं आमतौर पर
और थोड़े डरपोक भी
अच्छे लोगों की
सबसे बड़ी गड़बड़ी
यही होती है
कि जहाँ उन्हें साबित होना चाहिए समझदार
वहाँ वे साबित होते हैं बेहद अनाड़ी
अच्छे लोगों की
सबसे बड़ी खूबी यही होती है
कि वे अच्छे होते हैं
और अच्छे बने रहना चाहते हैं
हर हाल में
अच्छे लोग
इतने अच्छे होते हैं
कि एक अदना सा कवि भी
लिख सकता है उन पर
एक सबसे अच्छी कविता
मुकेश मानस
मंगलवार, 31 अगस्त 2010
वह क्या सोचेगा इस संसार, इस देश के बारे मै
वह क्या सोचेगा इस संसार, इस देश के बारे मै
सूरज की गर्मी मै पसीना बहाने मै
वक्त गुजर जाता है दो रोटी कमाने मै
वह क्या सोचेगा इस संसार, इस देश के बारे मै
जो रोते हुवे बच्चे को चुप करा नहीं पाता
शाम होने के बाद भी घर पहुँच नहीं पाता
वह क्या सोचेगा इस संसार, इस देश के बारे मै
सूरज की गर्मी मै पसीना बहाने मै
वक्त गुजर जाता है दो रोटी कमाने मै
वह क्या सोचेगा इस संसार, इस देश के बारे मै
जो रोते हुवे बच्चे को चुप करा नहीं पाता
शाम होने के बाद भी घर पहुँच नहीं पाता
वह क्या सोचेगा इस संसार, इस देश के बारे मै
सोमवार, 9 अगस्त 2010
"मैं" और "तुम"
प्रेमी प्रेमिका के घर का दरवाजा खटखटाता है
प्रेमिका : बाहर कोन है
प्रेमी : मै हूँ
प्रेमिका : इस घर मै एक साथ "मैं" और "तुम" नहीं रह सकते है
प्रेमी वापस लोट जाता है
कुछ दिनों बाद वापस लोट के आता है फिर दरवाजा खटखटाता है
फिर प्रेमिका कहती है
प्रेमिका : बाहर कोन है
प्रेमी कहता है
प्रेमी : तू ही है !
प्रेमिका दरवाजा खोल देती है
प्रेमिका : बाहर कोन है
प्रेमी : मै हूँ
प्रेमिका : इस घर मै एक साथ "मैं" और "तुम" नहीं रह सकते है
प्रेमी वापस लोट जाता है
कुछ दिनों बाद वापस लोट के आता है फिर दरवाजा खटखटाता है
फिर प्रेमिका कहती है
प्रेमिका : बाहर कोन है
प्रेमी कहता है
प्रेमी : तू ही है !
प्रेमिका दरवाजा खोल देती है
बुधवार, 28 जुलाई 2010
भष्ट बेपरवाह और बिंदास
आप चाहे जो कहें। पर भष्ट होना आज की तारीख में श्रेष्ठ होने से कमतर नहीं है। श्रेष्ठ होने का पैमाना होता है मगर भष्ट होने का कोई पैमाना नहीं होता है। आप कैसे भी। कहीं भी। किधर भी। भष्ट हो सकते हैं। कहीं कोई रोक-टोक नहीं। समाज में जितनी जल्दी पहचान भष्ट और भष्टाचार को मिलती है, उतनी श्रेष्ठ को नहीं। श्रेष्ठ हट-बचकर, साफ-सफाई के साथ जिंदगी को जीते हैं। भष्ट बेपरवाह और बिंदास होकर जिंदगी का मज़ा लेते हैं। श्रेष्ठ जेल जाने से भय खाता है। भष्ट खुलकर जेल जाता है। श्रेष्ठ के पांव होते हैं। भष्ट के पांव नहीं होते।
अभी हाल ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशल ने जो सूची जारी की है उसे जान-पढ़कर मैं बेहद प्रसन्न हूं। भष्टाचार में हम 72वें से 74वें स्थान पर आ गए हैं। हमारे भष्ट होने-कहलवाने में दो अंकों का सुधार हुआ है। यह सुधार जितना रचनात्मक है उतना ही विचारात्मक भी। इससे पता चलता है कि भष्टाचार हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बनता जा रहा है। इसकी उपयोगिता बढ़ने लगी है। लोग भष्ट होने के नए-नए तरीके सोचने-खोजने लगे हैं। हर कोई फिराक में है कि दांव लगे और गर्दन काटें। अब तक सरकारी महकमा ही भष्टाचार फैलाने का दोषी माना जाता था लेकिन अब निजी संस्थान भी उसी राह पर चलने लगे हैं। भष्टाचार भारत के कण-कण। रग-रग में अपनी पैठ जमा चुका है।
जिन्हें ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशल की रपट के आधार पर भारत के भष्ट-चरित्र पर ऐतराज़ है उनसे मेरा कहना है कि हम भष्टाचार में अभी बहुत पीछे हैं। आप ज़रा आंकड़े उठाकर देखिए हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान तो 140वें रूस, 145वें, ईरान और लीबिया 134वें व 135वें पायदान पर हैं। भष्टाचार में चीन भी कहां पीछे है हमसे। क्या आपको नहीं लगता इन तमाम भष्ट देशों के बीच हम कितने कम-भष्ट-देश हैं!
हम भष्टाचार को निभाना जानते हैं। हम भष्ट होते या बनते वक्त इस बात का पूरा ख्याल रखते हैं कि सामने वाला हमारा सहयोगी बन हमारा साथ निभाए। हमारे यहां अब तक जितने भी छोटे-बड़े घपले-घोटाले हुए हैं उनमें किसी एक की भूमिका कभी नहीं रही। कई-कई लोग इस भष्ट-मिशन में संग-साथ रहे। भष्टाचार का यह नियम है कि वो कभी एक व्यक्ति द्वारा संचालित नहीं होता। उसे जन-समर्थन हर कीमत पर हर जगह से चाहिए।
मुझे तो उन सिरफिरों की बातों को सुनकर बड़ा आश्चर्य होता है जो भष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेंकने का संकल्प यहां-वहां लेते फिरते हैं। हकीकत यह है कि ये आशावादी लोग आज तक अपनी सोच के भीतर छिपे भष्टाचार को बाहर नहीं ला पाए हैं, समाज का भष्टाचार क्या ख़ाक खत्म करेंगे! मेरे विचार से ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशल को एक रपट लोगों की सोच के भीतर छिपे-बैठे भष्टाचार पर तैयार करनी चाहिए ताकि हम जान-समझ सकें कि हम दिमागी तौर पर किस कदर भष्ट हैं। अगर यहां सामाजिक भष्टाचार है तो दिमागी भष्टचार भी कुछ कम नहीं। अंततः भष्टाचार दिमाग की ही तो उपज है।
अभी हाल ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशल ने जो सूची जारी की है उसे जान-पढ़कर मैं बेहद प्रसन्न हूं। भष्टाचार में हम 72वें से 74वें स्थान पर आ गए हैं। हमारे भष्ट होने-कहलवाने में दो अंकों का सुधार हुआ है। यह सुधार जितना रचनात्मक है उतना ही विचारात्मक भी। इससे पता चलता है कि भष्टाचार हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बनता जा रहा है। इसकी उपयोगिता बढ़ने लगी है। लोग भष्ट होने के नए-नए तरीके सोचने-खोजने लगे हैं। हर कोई फिराक में है कि दांव लगे और गर्दन काटें। अब तक सरकारी महकमा ही भष्टाचार फैलाने का दोषी माना जाता था लेकिन अब निजी संस्थान भी उसी राह पर चलने लगे हैं। भष्टाचार भारत के कण-कण। रग-रग में अपनी पैठ जमा चुका है।
जिन्हें ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशल की रपट के आधार पर भारत के भष्ट-चरित्र पर ऐतराज़ है उनसे मेरा कहना है कि हम भष्टाचार में अभी बहुत पीछे हैं। आप ज़रा आंकड़े उठाकर देखिए हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान तो 140वें रूस, 145वें, ईरान और लीबिया 134वें व 135वें पायदान पर हैं। भष्टाचार में चीन भी कहां पीछे है हमसे। क्या आपको नहीं लगता इन तमाम भष्ट देशों के बीच हम कितने कम-भष्ट-देश हैं!
हम भष्टाचार को निभाना जानते हैं। हम भष्ट होते या बनते वक्त इस बात का पूरा ख्याल रखते हैं कि सामने वाला हमारा सहयोगी बन हमारा साथ निभाए। हमारे यहां अब तक जितने भी छोटे-बड़े घपले-घोटाले हुए हैं उनमें किसी एक की भूमिका कभी नहीं रही। कई-कई लोग इस भष्ट-मिशन में संग-साथ रहे। भष्टाचार का यह नियम है कि वो कभी एक व्यक्ति द्वारा संचालित नहीं होता। उसे जन-समर्थन हर कीमत पर हर जगह से चाहिए।
मुझे तो उन सिरफिरों की बातों को सुनकर बड़ा आश्चर्य होता है जो भष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेंकने का संकल्प यहां-वहां लेते फिरते हैं। हकीकत यह है कि ये आशावादी लोग आज तक अपनी सोच के भीतर छिपे भष्टाचार को बाहर नहीं ला पाए हैं, समाज का भष्टाचार क्या ख़ाक खत्म करेंगे! मेरे विचार से ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशल को एक रपट लोगों की सोच के भीतर छिपे-बैठे भष्टाचार पर तैयार करनी चाहिए ताकि हम जान-समझ सकें कि हम दिमागी तौर पर किस कदर भष्ट हैं। अगर यहां सामाजिक भष्टाचार है तो दिमागी भष्टचार भी कुछ कम नहीं। अंततः भष्टाचार दिमाग की ही तो उपज है।
गुरुवार, 15 जुलाई 2010
प्रेम का भाव
यह तत वह तत एक है, एक प्रान दुइ गात
अपने जिय से जानिये, मेरे जिय की बात
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि जब प्रेम का भाव हृदय में उत्पन्न होता है तो दोनों प्रेमी आपस में इस तरह मिले हुए लगते हैं जैसे कि वह एक तत्व हों। वह दोनों अपने मुख से कहे बगैर एक दूसरे के हृदय की बात जान लेते हैं।
प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकासय
राजा परजा जो रुचै, शीश देव ले जाये
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि प्रेम की फसल किसी खेत में नहीं होती और न ही वह किसी हाट या बाजार में बिकता है। प्रेम तो वह भाव है कि अगर किसी व्यक्ति के प्रति मन में आ जाये तो भले ही वह सिर काटकर ले जाये। यह भाव राजा और प्रजा दोनों में समान रूप से विद्यमान होता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-आजकल तो हर जगह प्रेम प्रेम शब्द का उच्चारण होता है। खासतौर से आजकल के बाजार युग में प्रेम को केवल युवक युवतियों के आपसी संपर्क तक ही सीमित हो गया है। इसमें केवल तत्कालिक शारीरिक आकर्षण में बंधना ही प्रेम का पर्याय बन गया है। सच बात तो यह है कि प्रेम तो किसी से भी किया जा सकता है। भारतीय अध्यात्म में प्रेम का तो व्यापक अर्थ है और उसमें केवल निरंकार परमात्मा के प्रति ही किया गया प्रेम सच्चा माना जाता है। संसार में विचरण कर रहे जीवन से प्रेम करना तो एक तरह से अपनी आवश्यकताओं से उपजा भाव है। हां, अगर उनसे भी अगर निष्काम प्रेम किया जाये तो उससे सच्चे प्रेम का पर्याय माना जाता है।
सच्चा प्रेम तो वही है जिसमेंे कोई प्रेमी दूसरे से किसी प्रकार की आकांक्षा न करे जहां आकांक्षा हो वहां तो वह प्रेम सच्चा नहीं रह जाता। प्रेम का भाव तो स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होता है और वह बाह्य रूप नहीं बल्कि किसी व्यक्ति के आंतरिक गुणों से ही जाग्रत होता है। अतः जो निच्छल मन, उच्च विचार, और त्यागी भाव के होते हैं उनके प्रति सभी लोगों में मन में प्रेम का भाव उत्पन्न होता है।
दीपक भारतदीप, ग्वालियर
अपने जिय से जानिये, मेरे जिय की बात
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि जब प्रेम का भाव हृदय में उत्पन्न होता है तो दोनों प्रेमी आपस में इस तरह मिले हुए लगते हैं जैसे कि वह एक तत्व हों। वह दोनों अपने मुख से कहे बगैर एक दूसरे के हृदय की बात जान लेते हैं।
प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकासय
राजा परजा जो रुचै, शीश देव ले जाये
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि प्रेम की फसल किसी खेत में नहीं होती और न ही वह किसी हाट या बाजार में बिकता है। प्रेम तो वह भाव है कि अगर किसी व्यक्ति के प्रति मन में आ जाये तो भले ही वह सिर काटकर ले जाये। यह भाव राजा और प्रजा दोनों में समान रूप से विद्यमान होता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-आजकल तो हर जगह प्रेम प्रेम शब्द का उच्चारण होता है। खासतौर से आजकल के बाजार युग में प्रेम को केवल युवक युवतियों के आपसी संपर्क तक ही सीमित हो गया है। इसमें केवल तत्कालिक शारीरिक आकर्षण में बंधना ही प्रेम का पर्याय बन गया है। सच बात तो यह है कि प्रेम तो किसी से भी किया जा सकता है। भारतीय अध्यात्म में प्रेम का तो व्यापक अर्थ है और उसमें केवल निरंकार परमात्मा के प्रति ही किया गया प्रेम सच्चा माना जाता है। संसार में विचरण कर रहे जीवन से प्रेम करना तो एक तरह से अपनी आवश्यकताओं से उपजा भाव है। हां, अगर उनसे भी अगर निष्काम प्रेम किया जाये तो उससे सच्चे प्रेम का पर्याय माना जाता है।
सच्चा प्रेम तो वही है जिसमेंे कोई प्रेमी दूसरे से किसी प्रकार की आकांक्षा न करे जहां आकांक्षा हो वहां तो वह प्रेम सच्चा नहीं रह जाता। प्रेम का भाव तो स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होता है और वह बाह्य रूप नहीं बल्कि किसी व्यक्ति के आंतरिक गुणों से ही जाग्रत होता है। अतः जो निच्छल मन, उच्च विचार, और त्यागी भाव के होते हैं उनके प्रति सभी लोगों में मन में प्रेम का भाव उत्पन्न होता है।
दीपक भारतदीप, ग्वालियर
सोमवार, 14 जून 2010
अस्तित्व
तुम प्रेम के मोती को समेटे
हुए सागर हो
और मै नमक की ढली
प्रेम की तलाश मै
सागर मै डूबा
और
अपना अस्तित्व खो बैठा
अनूप पालीवाल
हुए सागर हो
और मै नमक की ढली
प्रेम की तलाश मै
सागर मै डूबा
और
अपना अस्तित्व खो बैठा
अनूप पालीवाल
रविवार, 13 जून 2010
सफलता
चुनोतिया जीवन को मजेदार बनाती है, और इसे पार करने पर जीवन अर्थ पूर्णः हो जाता है .....
जब कोई कहता है की '' यह नहीं हो सकता '' तो मुझे महसूस होता है की '' मै सफलता के करीब हूँ .....
जब तक तुम अपने पंखो को फेलाओगे नहीं, तब तक तुम्हे पता नहीं चलेगा की '' तुम कितनी ऊँची उडान भर सकते हो '' ....
अनूप पालीवाल
जब कोई कहता है की '' यह नहीं हो सकता '' तो मुझे महसूस होता है की '' मै सफलता के करीब हूँ .....
जब तक तुम अपने पंखो को फेलाओगे नहीं, तब तक तुम्हे पता नहीं चलेगा की '' तुम कितनी ऊँची उडान भर सकते हो '' ....
अनूप पालीवाल
तुम्हारे इंतजार मै ......
हाँ ... चाँद ही तो हो तुम
जिसकी रोशनी से मैने
रात के अँधेरे मै प्यार का सफ़र तय्किया
और इस सफ़र मै कई अमावस आई गई
हाँ .... पर शायद
यह अमावस बहुत लम्बी है
बहुत लम्बी है
फिर भी
खुद को जलाकर
जुगनू बनाकर
वन, वृक्ष, टहनियों पर
रहकर
उम्र भर
तकता रंहुंगा आसमान को
पूर्णिमा के इंतजार मै
तुम्हारे इंतजार मै ......
अनूप पालीवाल
जिसकी रोशनी से मैने
रात के अँधेरे मै प्यार का सफ़र तय्किया
और इस सफ़र मै कई अमावस आई गई
हाँ .... पर शायद
यह अमावस बहुत लम्बी है
बहुत लम्बी है
फिर भी
खुद को जलाकर
जुगनू बनाकर
वन, वृक्ष, टहनियों पर
रहकर
उम्र भर
तकता रंहुंगा आसमान को
पूर्णिमा के इंतजार मै
तुम्हारे इंतजार मै ......
अनूप पालीवाल
नजरिया
जो भी रचा है , मैंने
मे उसी का हिस्सा हूँ
पूरी तरह मोजूद हूँ उसमे
मेरा बहरिकरण और अंतःकरण
हर तरह से उत्तरदाई है
मे अपनी तमाम कमियों और अतियो मे सामिल हूँ
मेरे अज्ञान या मेरी लापरवाही से छुट गई है
जो गूंजाइशे
उसे मे पूरा नहीं कर संकुंगा उम्र भर
मै अपनी रची दुनिया के लिए दोषी हूँ
इसमे सामिल नहीं है
दुनिया भर के झगड़े, घर की परेशानी
पड़ोस के किस्से, दोस्तों की जरुरत
जानगया हूँ
ईश्वर ने रचा है मुझे
मै मनुष्य हूँ
मै मनुष्य होने की जिम्मेदारी से भाग नहीं सकता
अन्तःतह मै
निसंकोच कहूँगा
मै अपना नजरिया
अपनी सोच बदलूँगा ........
अनूप पालीवाल
मे उसी का हिस्सा हूँ
पूरी तरह मोजूद हूँ उसमे
मेरा बहरिकरण और अंतःकरण
हर तरह से उत्तरदाई है
मे अपनी तमाम कमियों और अतियो मे सामिल हूँ
मेरे अज्ञान या मेरी लापरवाही से छुट गई है
जो गूंजाइशे
उसे मे पूरा नहीं कर संकुंगा उम्र भर
मै अपनी रची दुनिया के लिए दोषी हूँ
इसमे सामिल नहीं है
दुनिया भर के झगड़े, घर की परेशानी
पड़ोस के किस्से, दोस्तों की जरुरत
जानगया हूँ
ईश्वर ने रचा है मुझे
मै मनुष्य हूँ
मै मनुष्य होने की जिम्मेदारी से भाग नहीं सकता
अन्तःतह मै
निसंकोच कहूँगा
मै अपना नजरिया
अपनी सोच बदलूँगा ........
अनूप पालीवाल
शुक्रवार, 4 जून 2010
समझौता
"तुम लोगों को देखते हो -- वे दुखी हैं क्योंकि उन्होंने हर मामले में समझौता किया है, और वे खुद को माफ नहीं कर सकते कि उन्होंने समझौता किया है। वे जानते हैं कि वे साहस कर सकते थे लेकिन वे कायर सिद्ध हुए। अपनी नजरों में ही वे गिर गए, उनका आत्म सम्मान खो गया। समझौते से ऐसा ही होता है।" ओशो
गुरुवार, 3 जून 2010
माँ - मुनव्वर राना
लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है
मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिन्दी मुस्कुराती है
घर की दहलीज़ पे रौशन हैं वो बुझती आँखें
मुझको मत रोक मुझे लौट के घर जाना है
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
अभी ज़िन्दा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा
मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ
मैदान छोड़ देने से मैं बच तो जाऊँगा
लेकिन जो यह ख़बर मेरी माँ तक पहुँच गई
‘मुनव्वर’! माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमीं अच्छी नहीं होती
- मुनव्वर राना
मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिन्दी मुस्कुराती है
घर की दहलीज़ पे रौशन हैं वो बुझती आँखें
मुझको मत रोक मुझे लौट के घर जाना है
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
अभी ज़िन्दा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा
मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ
मैदान छोड़ देने से मैं बच तो जाऊँगा
लेकिन जो यह ख़बर मेरी माँ तक पहुँच गई
‘मुनव्वर’! माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमीं अच्छी नहीं होती
- मुनव्वर राना
सदस्यता लें
संदेश (Atom)